वनस्पति: Difference between revisions
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<li> जैन दर्शन में वनस्पति को भी एकेन्द्रिय जीव का शरीर माना गया है । वह दो प्रकार का है<strong>−</strong>प्रत्येक व साधारण । एक जीव के शरीर को प्रत्येक और अनन्तों जीवों के साझले शरीर को साधारण कहते हैं, क्योंकि उस शरीर में उन अनन्तों जीवों का जन्म-मरण,श्वासोच्छ्वास आदि साधारण रूप से अर्थात् एक साथ समान रूप से होता है । एक ही शरीर में अनन्तों बसते हैं, इसलिए इस शरीर को निगोद कहते हैं, उपचार से उसमें बसने वाले जीवों को भी निगोद कहते हैं । वह निगोद भी दो प्रकार का है नित्य व इतर निगोद । जो अनादि काल से आज तक निगोद पर्याय से निकला ही नहीं, वह नित्य निगोद है और त्रसस्थावर आदि अन्य पर्यायों में घूमकर पापोदयवश पुनः-पुनः निगोद को प्राप्त होने वाले इतर निगोद हैं । प्रत्येक शरीर बादर या स्थूल ही होता है पर साधारण बादर व सूक्ष्म दोनों प्रकार का ।</li> | |||
<li> नित्य खाने-पीने के काम में आने वाली वनस्पति प्रत्येक शरीर है । वह दो प्रकार है<strong>−</strong>अप्रतिष्ठित और सप्रतिष्ठित । एक ही जीव के शरीर वाली वनस्पति अप्रतिष्ठित है और असंख्यात साधारण शरीरों के समवाय से निष्पन्न वनस्पति सप्रतिष्ठित है । तहाँ एक-एक वनस्पति के स्कन्ध में एक रस होकर असंख्यात साधारण शरीर होते हैं और एक-एक उस साधारण शरीर में अनन्तानन्त निगोद जीव वास करते हैं । सूक्ष्म साधारण शरीर या निगोद जीव लोक में सर्वत्र ठसाठस भरे हुए हैं, पर सूक्ष्म होने से हमारे ज्ञान के विषय नहीं हैं । सन्तरा, आमआदि अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति हैं और आलू, गाजर, मूली आदि सप्रतिष्ठित प्रत्येक । अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति पत्ते, फल, फूल आदि भी अत्यन्त कचिया अवस्था में सप्रतिष्ठित प्रत्येक होते हैं<strong>−</strong>जैसे कौंपल । पीछे पक जाने पर अप्रतिष्ठित हो जाते हैं । अनन्त जीवों की साझली काय होने से सप्रतिष्ठित प्रत्येक को अनन्तकायिक भी कहते हैं । इस जाति की सर्व वनस्पति को यहाँ अभक्ष्य स्वीकार किया गया है ।</li> | |||
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<li><strong>[[ वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong><strong> </strong>]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong>#1.1 | वनस्पति सामान्य के भेद । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong>#1.2 | प्रत्येक वनस्पति सामान्य का लक्षण । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong>#1.4 | वनस्पति के लिए ही प्रत्येक शब्द का प्रयोग है । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong>#1.5 | मूलबीज, अग्रबीजादि के लक्षण । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong>#1.6 | प्रत्येक शरीर नामकर्म का लक्षण । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश </strong>#1.7 | प्रत्येक शरीर वर्गणा का प्रमाण । ]]<br /> | |||
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<li> प्रत्येक शरीर नामकर्म के असंख्यात भेद हैं।<strong>−</strong>देखें [[ नामकर्म ]]। <br /> | |||
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<li> वनस्पतिकायिक जीवों के गुणस्थान, जीवसमास, मार्गणास्थान के स्वामित्व सम्बन्धी 20 प्ररूपणाएँ। <br /> | |||
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<li> वनस्पतिकायिक जीवों की सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, अल्पबहुत्वरूप आठ प्ररूपणाएँ ।<strong>−</strong>देखें [[ वह वह नाम ]]। <br /> | |||
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<li> वनस्पतिकायिक जीवों में कर्मों का बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ ।<strong>−</strong>देखें [[ वह वह नाम ]]। <br /> | |||
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<li> प्रत्येक नामकर्म की बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ ।<strong>−</strong>देखें [[ वह वह नाम ]]। <br /> | |||
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<li> प्रत्येक वनस्पति में जीव समासों का स्वामित्व ।<strong>−</strong>देखें [[ वनस्पति#1.1 | वनस्पति - 1.1 ]]। <br /> | |||
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<li> निर्वृत्त्यपर्याप्त दशा में प्रत्येक वनस्पति में सासादन गुणस्थान की सम्भावना ।<strong>−</strong>देखें [[ सासादन#1 | सासादन - 1 ]]। <br /> | |||
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<li> मार्गणा प्रकरण में भाव मार्गणा की इष्टता तथा वहाँ आय के अनुसार व्यय होने का नियम ।<strong>−</strong>देखें [[ मार्गणा ]]। <br /> | |||
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<li> उदम्बर फल ।<strong>−</strong>देखें [[ उदम्बर ]]। <br /> | |||
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<li> वनस्पति में भक्ष्याभक्ष्य विचार−देखें [[ भक्ष्याभक्ष्य#4 | भक्ष्याभक्ष्य - 4 ]]। <br /> | |||
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<li> वनस्पतिकायिकों का लोक में अवस्थान ।−देखें [[ स्थावर ]]। <br /> | |||
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<li> [[<strong>निगोद निर्देश</strong><strong> </strong>#2.5 | प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति को उपचार से सूक्ष्म निगोद भी कह देते हैं । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>निगोद निर्देश</strong><strong> </strong>#2.7 | साधारण जीवों को ही निगोद जीव कहते हैं ।]] <br /> | |||
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<li>[[<strong>निगोद निर्देश</strong><strong> </strong>#2.8 | विग्रहगति में निगोदिया जीव साधारण ही होते हैं प्रत्येक नहीं । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>निगोद निर्देश</strong><strong> </strong>#2.9 | निगोदिया जीव का आकार ।]] <br /> | |||
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<li>[[<strong>निगोद निर्देश</strong><strong> </strong>#2.10 | सूक्ष्म व बादर निगोद वर्गणाएँ व उनका लोक में अवस्थान । ]]<br /> | |||
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<li> निगोद से निकलकर सीधी मुक्ति प्राप्त करने सम्बन्धी ।−देखें [[ जन्म#5 | जन्म - 5 ]]। <br /> | |||
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<li> जितने जीव मुक्त होते हैं, उतने ही नित्य निगोद से निकलते हैं ।−देखें [[ मोक्ष#2 | मोक्ष - 2 ]]। <br /> | |||
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<li> नित्यमुक्त रहते भी निगोद राशि का अन्त नहीं ।−देखें [[ मोक्ष#6 | मोक्ष - 6 ]]। <br /> | |||
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<li><strong> [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong>]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.1 | प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित प्रत्येक के लक्षण ।]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.2 | प्रत्येक वनस्पति बादर ही होती है । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.3 | वनस्पति में ही साधारण जीव होते हैं पृथिवी आदि में नहीं । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.4 | पृथिवी आदि देव, नारकी, तीर्थंकर आदि प्रत्येक शरीरी ही होते हैं ।]] <br /> | |||
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<li> क्षीणकषाय जीव के शरीर में जीवों का हानिक्रम ।−देखें [[ क्षीणकषाय ]]। <br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.5 | कन्द मूल आदि सभी वनस्पतियाँ प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित दोनों प्रकार की होती हैं । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.6 | अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिस्कन्ध में भी संख्यात या असंख्यात जीव होते हैं । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#3.7 | प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिस्कन्ध में अनन्त जीवों के शरीर की रचना विशेष । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण वनस्पति परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#4.1 | साधारण शरीर नामकर्म का लक्षण ।]] <br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण वनस्पति परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#4.2 | साधारण जीवों का लक्षण । ]]<br /> | |||
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<li> साधारण व प्रत्येक शरीर नामकर्म के असंख्यात भेद हैं−देखें [[ नामकर्म ]]। <br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण वनस्पति परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#4.6 | एक साधारण शरीर में अनन्त जीवों का अवस्थान । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण वनस्पति परिचय</strong><strong> </strong><strong> </strong>#4.7 | साधारण शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना । ]]<br /> | |||
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<li> साधारण नामकर्म की बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ ।−देखें [[ वह वह नाम ]]। <br /> | |||
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<li> साधारण वनस्पति जीवसमासों का स्वामित्व ।−देखें [[ वनस्पति#1.1 | वनस्पति - 1.1 ]]। <br /> | |||
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<li> बीजवाला ही जीव या अन्य कोई भी जीव उस योनि स्थान में जन्म धारण कर सकता है । <br /> | |||
<strong>−</strong>देखें [[ जन्म#2 | जन्म - 2 ]]। <br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम</strong><strong> </strong>#5.5 | बादर व सूक्ष्म निगोद शरीरों में पर्याप्त व अपर्याप्त जीवों के अवस्थान सम्बन्धी नियम ।]] <br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम</strong><strong> </strong>#5.6 | अनेक जीवों का एक शरीर होने में हेतु । ]]<br /> | |||
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<li>[[<strong>साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम</strong><strong> </strong>#5.7 | अनेक जीवों का एक आहार होने में हेतु । ]]</li> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
- जैन दर्शन में वनस्पति को भी एकेन्द्रिय जीव का शरीर माना गया है । वह दो प्रकार का है−प्रत्येक व साधारण । एक जीव के शरीर को प्रत्येक और अनन्तों जीवों के साझले शरीर को साधारण कहते हैं, क्योंकि उस शरीर में उन अनन्तों जीवों का जन्म-मरण,श्वासोच्छ्वास आदि साधारण रूप से अर्थात् एक साथ समान रूप से होता है । एक ही शरीर में अनन्तों बसते हैं, इसलिए इस शरीर को निगोद कहते हैं, उपचार से उसमें बसने वाले जीवों को भी निगोद कहते हैं । वह निगोद भी दो प्रकार का है नित्य व इतर निगोद । जो अनादि काल से आज तक निगोद पर्याय से निकला ही नहीं, वह नित्य निगोद है और त्रसस्थावर आदि अन्य पर्यायों में घूमकर पापोदयवश पुनः-पुनः निगोद को प्राप्त होने वाले इतर निगोद हैं । प्रत्येक शरीर बादर या स्थूल ही होता है पर साधारण बादर व सूक्ष्म दोनों प्रकार का ।
- नित्य खाने-पीने के काम में आने वाली वनस्पति प्रत्येक शरीर है । वह दो प्रकार है−अप्रतिष्ठित और सप्रतिष्ठित । एक ही जीव के शरीर वाली वनस्पति अप्रतिष्ठित है और असंख्यात साधारण शरीरों के समवाय से निष्पन्न वनस्पति सप्रतिष्ठित है । तहाँ एक-एक वनस्पति के स्कन्ध में एक रस होकर असंख्यात साधारण शरीर होते हैं और एक-एक उस साधारण शरीर में अनन्तानन्त निगोद जीव वास करते हैं । सूक्ष्म साधारण शरीर या निगोद जीव लोक में सर्वत्र ठसाठस भरे हुए हैं, पर सूक्ष्म होने से हमारे ज्ञान के विषय नहीं हैं । सन्तरा, आमआदि अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति हैं और आलू, गाजर, मूली आदि सप्रतिष्ठित प्रत्येक । अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति पत्ते, फल, फूल आदि भी अत्यन्त कचिया अवस्था में सप्रतिष्ठित प्रत्येक होते हैं−जैसे कौंपल । पीछे पक जाने पर अप्रतिष्ठित हो जाते हैं । अनन्त जीवों की साझली काय होने से सप्रतिष्ठित प्रत्येक को अनन्तकायिक भी कहते हैं । इस जाति की सर्व वनस्पति को यहाँ अभक्ष्य स्वीकार किया गया है ।
- [[ वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.1 | वनस्पति सामान्य के भेद । ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.2 | प्रत्येक वनस्पति सामान्य का लक्षण । ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.3 | प्रत्येक वनस्पति के भेद । ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.4 | वनस्पति के लिए ही प्रत्येक शब्द का प्रयोग है । ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.5 | मूलबीज, अग्रबीजादि के लक्षण । ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.6 | प्रत्येक शरीर नामकर्म का लक्षण । ]]
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.7 | प्रत्येक शरीर वर्गणा का प्रमाण । ]]
- प्रत्येक शरीर नामकर्म के असंख्यात भेद हैं।−देखें नामकर्म ।
- वनस्पतिकायिक जीवों के गुणस्थान, जीवसमास, मार्गणास्थान के स्वामित्व सम्बन्धी 20 प्ररूपणाएँ।
−देखें सत् ।
- वनस्पतिकायिक जीवों की सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, अल्पबहुत्वरूप आठ प्ररूपणाएँ ।−देखें वह वह नाम ।
- वनस्पतिकायिक जीवों में कर्मों का बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ ।−देखें वह वह नाम ।
- प्रत्येक नामकर्म की बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ ।−देखें वह वह नाम ।
- प्रत्येक वनस्पति में जीव समासों का स्वामित्व ।−देखें वनस्पति - 1.1 ।
- निर्वृत्त्यपर्याप्त दशा में प्रत्येक वनस्पति में सासादन गुणस्थान की सम्भावना ।−देखें सासादन - 1 ।
- मार्गणा प्रकरण में भाव मार्गणा की इष्टता तथा वहाँ आय के अनुसार व्यय होने का नियम ।−देखें मार्गणा ।
- उदम्बर फल ।−देखें उदम्बर ।
- वनस्पति में भक्ष्याभक्ष्य विचार−देखें भक्ष्याभक्ष्य - 4 ।
- वनस्पतिकायिकों का लोक में अवस्थान ।−देखें स्थावर ।
- [[वनस्पति व प्रत्येक वनस्पति सामान्य निर्देश #1.1 | वनस्पति सामान्य के भेद । ]]
- [[ निगोद निर्देश ]]
- [[निगोद निर्देश #2.1 | निगोद सामान्य का लक्षण । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.2 | निगोद जीवों के भेद । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.3 | नित्य व अनित्य निगोद के लक्षण । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.4 | सूक्ष्म वनस्पति तो निगोद ही है पर सूक्ष्म निगोद वनस्पतिकायिक ही नहीं है । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.5 | प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति को उपचार से सूक्ष्म निगोद भी कह देते हैं । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.6 | प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति को उपचार से बादर निगोद भी कह देते हैं । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.7 | साधारण जीवों को ही निगोद जीव कहते हैं ।]]
- [[निगोद निर्देश #2.8 | विग्रहगति में निगोदिया जीव साधारण ही होते हैं प्रत्येक नहीं । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.9 | निगोदिया जीव का आकार ।]]
- [[निगोद निर्देश #2.10 | सूक्ष्म व बादर निगोद वर्गणाएँ व उनका लोक में अवस्थान । ]]
- [[निगोद निर्देश #2.1 | निगोद सामान्य का लक्षण । ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.1 | प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित प्रत्येक के लक्षण ।]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.2 | प्रत्येक वनस्पति बादर ही होती है । ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.3 | वनस्पति में ही साधारण जीव होते हैं पृथिवी आदि में नहीं । ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.4 | पृथिवी आदि देव, नारकी, तीर्थंकर आदि प्रत्येक शरीरी ही होते हैं ।]]
- क्षीणकषाय जीव के शरीर में जीवों का हानिक्रम ।−देखें क्षीणकषाय ।
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.5 | कन्द मूल आदि सभी वनस्पतियाँ प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित दोनों प्रकार की होती हैं । ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.6 | अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिस्कन्ध में भी संख्यात या असंख्यात जीव होते हैं । ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.7 | प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिस्कन्ध में अनन्त जीवों के शरीर की रचना विशेष । ]]
- [[प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय #3.1 | प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित प्रत्येक के लक्षण ।]]
- [[ साधारण वनस्पति परिचय ]]
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.1 | साधारण शरीर नामकर्म का लक्षण ।]]
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.2 | साधारण जीवों का लक्षण । ]]
- साधारण व प्रत्येक शरीर नामकर्म के असंख्यात भेद हैं−देखें नामकर्म ।
- साधारण वनस्पति के भेद ।−देखें वनस्पति - 2.2 ।
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.3 | बोने के अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त सभी वनस्पति अप्रतिष्ठित प्रत्येक होती हैं ।]]
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.4 | कचिया अवस्था में सभी वनस्पतियाँ प्रतिष्ठित प्रत्येक होती हैं ।]]
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.5 | प्रत्येक व साधारण वनस्पति का सामान्य परिचय ।]]
- प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर बादर जीवों का योनि स्थान है, सूक्ष्म का नहीं ।−देखें वनस्पति - 2.10 ।
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.6 | एक साधारण शरीर में अनन्त जीवों का अवस्थान । ]]
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.7 | साधारण शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना । ]]
- साधारण नामकर्म की बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ ।−देखें वह वह नाम ।
- साधारण वनस्पति जीवसमासों का स्वामित्व ।−देखें वनस्पति - 1.1 ।
- [[साधारण वनस्पति परिचय #4.1 | साधारण शरीर नामकर्म का लक्षण ।]]
- साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.1 | निगोद शरीर में जीवों की उत्पत्ति क्रम से होती है ।]]
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.2 | निगोद शरीर में जीवों की उत्पत्ति क्रम व अक्रम दोनों प्रकार से होती है । ]]
- जन्म मरण के क्रम व अक्रम सम्बन्धी समन्वय ।−देखें वनस्पति - 5.2 ।
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.3 | आगे पीछे उत्पन्न होकर भी उनकी पर्याप्ति युगपत् होती है । ]]
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.4 | एक ही निगोद शरीर में जीवों के आवागमन का प्रवाह चलता रहता है ।]]
- बीजवाला ही जीव या अन्य कोई भी जीव उस योनि स्थान में जन्म धारण कर सकता है ।
−देखें जन्म - 2 ।
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.5 | बादर व सूक्ष्म निगोद शरीरों में पर्याप्त व अपर्याप्त जीवों के अवस्थान सम्बन्धी नियम ।]]
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.6 | अनेक जीवों का एक शरीर होने में हेतु । ]]
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.7 | अनेक जीवों का एक आहार होने में हेतु । ]]
- [[साधारण शरीर में जीवों का उत्पत्ति क्रम #5.1 | निगोद शरीर में जीवों की उत्पत्ति क्रम से होती है ।]]