आवली: Difference between revisions
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<p>1. क्षेत्रका एक प्रमाण विशेष - देखें [[ गणित#I.1.3 | गणित - I.1.3]]। 2. काल का एक प्रमाण विशेष - देखें [[ गणित#I.1 | गणित - I.1]]। 3. जघन्य युक्तासंख्यात समयोंकी एक आवली होती है। इसका छः भेद रूपसे उल्लेख मिलता है यथा अचलावली-गो.क.अर्थ.स./पृ.24 प्रकृति बन्ध भये पीछे आवली काल मात्र उदय उदीरणादि रूप होने योग्य नाहीं सो अचलावली है। (इसे बन्धावली भी कहते हैं।) (गो.क./भाषा 159/194/4); अतिस्थावली - लब्धिसार / भाषा 58/90/13 स्थितिका अन्त निषेकका द्रव्य कौं अपकर्षण करि नीचले निषेकनिवेषैं निक्षेपण करतैं तिस अन्त निषेककें नीचैं आवलि मात्र निषैंक तौ अति स्थापनरूप हैं अर समय अधिक दोय आवली करि हीन उत्कृष्ट स्थिति मात्र निक्षेप हो हैं सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप जानना। इहाँ बध भएँ पीछैं आवली कालपर्यन्त तो उदीरणा होई नाहीं तातैं एक आवली तौ आबाधा विषैं गई अर एक आवली अतिस्थापन रूप रही अन्तका द्रव्य ग्रह्या ही है तातैं उत्कृष्ट स्थिति विषैं दोई आवली एक समय घटाया है। अंक संदृष्टि करि जैसे उत्कृष्ट स्थिति हजार समय तहाँ सोलह समय तौं आबाधाविषैं गये अर नवसैं चौरासी निषेक हैं तहाँ अन्त निषेकका द्रव्य अपकर्षण करि प्रथमादि नवसै सतसठि निषेकनि विषैं दीया सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप है। अर ताकै ऊपरि सोलह निषेकनिविषैं न दीया सो यहु अतिस्थापमावली है। (विशेष-देखें [[ अपकर्षण ]]); उच्छिष्टावलि - गो.क./भाषा/342/494/8 “उदयको प्राप्त नाहीं जे नपुंसक वेद आदि तिनिकी क्षय भये पीछै अवशेष उच्छिष्ट रही सर्व स्थिति, समय अधिक आवली प्रमाण है।</p> | <p>1. क्षेत्रका एक प्रमाण विशेष - देखें [[ गणित#I.1.3 | गणित - I.1.3]]। 2. काल का एक प्रमाण विशेष - देखें [[ गणित#I.1 | गणित - I.1]]। 3. जघन्य युक्तासंख्यात समयोंकी एक आवली होती है। इसका छः भेद रूपसे उल्लेख मिलता है यथा अचलावली-गो.क.अर्थ.स./पृ.24 प्रकृति बन्ध भये पीछे आवली काल मात्र उदय उदीरणादि रूप होने योग्य नाहीं सो अचलावली है। (इसे बन्धावली भी कहते हैं।) (गो.क./भाषा 159/194/4); अतिस्थावली - लब्धिसार / भाषा 58/90/13 स्थितिका अन्त निषेकका द्रव्य कौं अपकर्षण करि नीचले निषेकनिवेषैं निक्षेपण करतैं तिस अन्त निषेककें नीचैं आवलि मात्र निषैंक तौ अति स्थापनरूप हैं अर समय अधिक दोय आवली करि हीन उत्कृष्ट स्थिति मात्र निक्षेप हो हैं सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप जानना। इहाँ बध भएँ पीछैं आवली कालपर्यन्त तो उदीरणा होई नाहीं तातैं एक आवली तौ आबाधा विषैं गई अर एक आवली अतिस्थापन रूप रही अन्तका द्रव्य ग्रह्या ही है तातैं उत्कृष्ट स्थिति विषैं दोई आवली एक समय घटाया है। अंक संदृष्टि करि जैसे उत्कृष्ट स्थिति हजार समय तहाँ सोलह समय तौं आबाधाविषैं गये अर नवसैं चौरासी निषेक हैं तहाँ अन्त निषेकका द्रव्य अपकर्षण करि प्रथमादि नवसै सतसठि निषेकनि विषैं दीया सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप है। अर ताकै ऊपरि सोलह निषेकनिविषैं न दीया सो यहु अतिस्थापमावली है। (विशेष-देखें [[ अपकर्षण ]]); उच्छिष्टावलि - गो.क./भाषा/342/494/8 “उदयको प्राप्त नाहीं जे नपुंसक वेद आदि तिनिकी क्षय भये पीछै अवशेष उच्छिष्ट रही सर्व स्थिति, समय अधिक आवली प्रमाण है।</p> | ||
<p>( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 744/5)</p> | <p>( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 744/5)</p> | ||
<p>एतावत्स्थिताववशिष्टायां विसंयोजनोपशमनक्षपणा क्रिया नेतीदमुच्छिष्टावलिनाम् ।</p> | <p class="SanskritText">एतावत्स्थिताववशिष्टायां विसंयोजनोपशमनक्षपणा क्रिया नेतीदमुच्छिष्टावलिनाम् ।</p> | ||
<p>= इतनी स्थिति अवशेष रहे विसंयोजनका उपशमन वा क्षपणा क्रिया न होई सके तातै याकौ उच्छिष्टावली कहिए। गो.क.अर्थ.स/पृ.24 (सम्पूर्ण कर्म स्थितिकी अन्तिम आवली) अन्तके आवली प्रमाण निषेक अवशेष रहें सो उच्छिष्टावली है। उदयावली - गो.अर्थ सं./पृ.24 बहुरि (आबाधा काल भये पीछे) आवली विषैं आवने योग्य समूह तो उदयावली है। द्वितीयावली-उदयावलीसे ऊपरके आवली प्रमाण कालको द्वितीयावली या प्रत्यावली कहते हैं। प्रत्यावली-देखें [[ अपर द्वितीयावली ]]; बन्धावली -देखें [[ अचलावली ]]; वृन्दावली-(आवलीके समय)3।</p> | <p class="HindiText">= इतनी स्थिति अवशेष रहे विसंयोजनका उपशमन वा क्षपणा क्रिया न होई सके तातै याकौ उच्छिष्टावली कहिए। गो.क.अर्थ.स/पृ.24 (सम्पूर्ण कर्म स्थितिकी अन्तिम आवली) अन्तके आवली प्रमाण निषेक अवशेष रहें सो उच्छिष्टावली है। उदयावली - गो.अर्थ सं./पृ.24 बहुरि (आबाधा काल भये पीछे) आवली विषैं आवने योग्य समूह तो उदयावली है। द्वितीयावली-उदयावलीसे ऊपरके आवली प्रमाण कालको द्वितीयावली या प्रत्यावली कहते हैं। प्रत्यावली-देखें [[ अपर द्वितीयावली ]]; बन्धावली -देखें [[ अचलावली ]]; वृन्दावली-(आवलीके समय)3।</p> | ||
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Revision as of 13:48, 10 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
1. क्षेत्रका एक प्रमाण विशेष - देखें गणित - I.1.3। 2. काल का एक प्रमाण विशेष - देखें गणित - I.1। 3. जघन्य युक्तासंख्यात समयोंकी एक आवली होती है। इसका छः भेद रूपसे उल्लेख मिलता है यथा अचलावली-गो.क.अर्थ.स./पृ.24 प्रकृति बन्ध भये पीछे आवली काल मात्र उदय उदीरणादि रूप होने योग्य नाहीं सो अचलावली है। (इसे बन्धावली भी कहते हैं।) (गो.क./भाषा 159/194/4); अतिस्थावली - लब्धिसार / भाषा 58/90/13 स्थितिका अन्त निषेकका द्रव्य कौं अपकर्षण करि नीचले निषेकनिवेषैं निक्षेपण करतैं तिस अन्त निषेककें नीचैं आवलि मात्र निषैंक तौ अति स्थापनरूप हैं अर समय अधिक दोय आवली करि हीन उत्कृष्ट स्थिति मात्र निक्षेप हो हैं सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप जानना। इहाँ बध भएँ पीछैं आवली कालपर्यन्त तो उदीरणा होई नाहीं तातैं एक आवली तौ आबाधा विषैं गई अर एक आवली अतिस्थापन रूप रही अन्तका द्रव्य ग्रह्या ही है तातैं उत्कृष्ट स्थिति विषैं दोई आवली एक समय घटाया है। अंक संदृष्टि करि जैसे उत्कृष्ट स्थिति हजार समय तहाँ सोलह समय तौं आबाधाविषैं गये अर नवसैं चौरासी निषेक हैं तहाँ अन्त निषेकका द्रव्य अपकर्षण करि प्रथमादि नवसै सतसठि निषेकनि विषैं दीया सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप है। अर ताकै ऊपरि सोलह निषेकनिविषैं न दीया सो यहु अतिस्थापमावली है। (विशेष-देखें अपकर्षण ); उच्छिष्टावलि - गो.क./भाषा/342/494/8 “उदयको प्राप्त नाहीं जे नपुंसक वेद आदि तिनिकी क्षय भये पीछै अवशेष उच्छिष्ट रही सर्व स्थिति, समय अधिक आवली प्रमाण है।
( गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 744/5)
एतावत्स्थिताववशिष्टायां विसंयोजनोपशमनक्षपणा क्रिया नेतीदमुच्छिष्टावलिनाम् ।
= इतनी स्थिति अवशेष रहे विसंयोजनका उपशमन वा क्षपणा क्रिया न होई सके तातै याकौ उच्छिष्टावली कहिए। गो.क.अर्थ.स/पृ.24 (सम्पूर्ण कर्म स्थितिकी अन्तिम आवली) अन्तके आवली प्रमाण निषेक अवशेष रहें सो उच्छिष्टावली है। उदयावली - गो.अर्थ सं./पृ.24 बहुरि (आबाधा काल भये पीछे) आवली विषैं आवने योग्य समूह तो उदयावली है। द्वितीयावली-उदयावलीसे ऊपरके आवली प्रमाण कालको द्वितीयावली या प्रत्यावली कहते हैं। प्रत्यावली-देखें अपर द्वितीयावली ; बन्धावली -देखें अचलावली ; वृन्दावली-(आवलीके समय)3।
पुराणकोष से
(1) भानुरक्ष के पुत्रों द्वारा बसाये गये दस नगरों में एक नगर-राक्षसों की निवासभूमि । पद्मपुराण 5.373-374
(2) प्रवर नामक राजा की रानी, तनूदरी की जननी । महापुराण 9.24