आवली
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
1. क्षेत्र का एक प्रमाण विशेष - देखें गणित - I.1.4।
2. काल का एक प्रमाण विशेष - देखें गणित - I.1.4।
3. जघन्य युक्तासंख्यात समयों की एक आवली होती है। इसका छः भेद रूपसे उल्लेख मिलता है यथा अचलावली- गोम्मटसार कर्मकांड अर्थ संदृष्टि/पृष्ठ 24 प्रकृति बंध भये पीछे आवली काल मात्र उदय उदीरणादि रूप होने योग्य नाहीं सो अचलावली है। (इसे बंधावली भी कहते हैं।) गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा 159/194/4; अतिस्थावली - लब्धिसार / भाषा 58/90/13 स्थिति का अंत निषेक का द्रव्य कौं अपकर्षण करि नीचले निषेकनिवेषैं निक्षेपण करतैं तिस अंत निषेक कें नीचैं आवलि मात्र निषैंक तौ अति स्थापनरूप हैं अर समय अधिक दोय आवली करि हीन उत्कृष्ट स्थिति मात्र निक्षेप हो हैं सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप जानना। इहाँ बध भएँ पीछैं आवली काल पर्यंत तो उदीरणा होई नाहीं तातैं एक आवली तौ आबाधा विषैं गई अर एक आवली अतिस्थापन रूप रही अंत का द्रव्य ग्रह्या ही है तातैं उत्कृष्ट स्थिति विषैं दोई आवली एक समय घटाया है। अंक संदृष्टि करि जैसे उत्कृष्ट स्थिति हजार समय तहाँ सोलह समय तौं आबाधा विषैं गये अर नवसैं चौरासी निषेक हैं तहाँ अंत निषेक का द्रव्य अपकर्षण करि प्रथमादि नवसै सतसठि निषेकनि विषैं दीया सो यहु उत्कृष्ट निक्षेप है। अर ताकै ऊपरि सोलह निषेकनिविषैं न दीया सो यहु अतिस्थापमावली है। (विशेष-देखें अपकर्षण ); उच्छिष्टावलि - गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा/342/494/8 “उदय को प्राप्त नाहीं जे नपुंसक वेद आदि तिनिकी क्षय भये पीछै अवशेष उच्छिष्ट रही सर्व स्थिति, समय अधिक आवली प्रमाण है।
( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 744/5)
एतावत्स्थिताववशिष्टायां विसंयोजनोपशमनक्षपणा क्रिया नेतीदमुच्छिष्टावलिनाम् ।
= इतनी स्थिति अवशेष रहे विसंयोजन का उपशमन वा क्षपणा क्रिया न होई सके तातै याकौ उच्छिष्टावली कहिए।
गोम्मटसार कर्मकांड अर्थ संदृष्टि/पृष्ठ/24
=(संपूर्ण कर्म स्थितिकी अंतिम आवली) अंत के आवली प्रमाण निषेक अवशेष रहें सो उच्छिष्टावली है।
- गोम्मटसार कर्मकांड अर्थ संदृष्टि/पृष्ठ/24
= उदयावली बहुरि (आबाधा काल भये पीछे) आवली विषैं आवने योग्य समूह तो उदयावली है। द्वितीयावली-उदयावली से ऊपर के आवली प्रमाण काल को द्वितीयावली या प्रत्यावली कहते हैं।
प्रत्यावली-देखें अपर द्वितीयावली ; बंधावली -देखें अचलावली ; वृंदावली-(आवली के समय)3।
पुराणकोष से
(1) भानुरक्ष के पुत्रों द्वारा बसाये गये दस नगरों में एक नगर-राक्षसों की निवासभूमि । पद्मपुराण - 5.373-374
(2) प्रवर नामक राजा की रानी, तनूदरी की जननी । महापुराण 9.24