काहे पाप करे काहे छल: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:23, 14 February 2008
काहे पाप करे काहे छल, जरा चेत ओ मानव करनी से....
तेरी आयु घटे पल पल ।।टेक ।।
तेरा तुझको न बोध विचार है, मानमाया का छाया अपार है ।
कैसे भोंदू बना है संभल, जरा चेत ओ मानव करनी से... ।।१ ।।
तेरा ज्ञाता व दृष्टा स्वभाव है, काहे जड़ से यूं इतना लगाव है ।
दुनियां ठगनी पे अब ना मचल, जरा चेत ओ मानव करनी से... ।।२ ।।
शुद्ध चिद्रूप चेतन स्वरूप तू, मोक्ष लक्ष्मी का `सौभाग्य' भूप तूं ।
बन सकता है यह बल प्रबल, जरा चेत ओ मानव करनी से... ।।३ ।।