योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 105: Difference between revisions
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रागादि भाव कर्मजनित हैं - | <p class="Utthanika">रागादि भाव कर्मजनित हैं -</p> | ||
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विकारा: सन्ति ये केचिद्राग-द्वेष-मदादय: ।<br> | विकारा: सन्ति ये केचिद्राग-द्वेष-मदादय: ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- मेघजा: तिग्म-अंशो: इव (जीवस्य) केचित् राग-द्वेष-मोहादय: विकारा: सन्ति; ते अखिला: कर्मजा: ज्ञेया: । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- मेघजा: तिग्म-अंशो: इव (जीवस्य) केचित् राग-द्वेष-मोहादय: विकारा: सन्ति; ते अखिला: कर्मजा: ज्ञेया: । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- मेघ के निमित्त से उत्पन्न होनेवाले सूर्य के विकार के समान जीव के राग, द्वेष, मद आदि जो कुछ भी विकार अर्थात् विभाव भाव हैं, वे सब कर्मजनित हैं; ऐसा जानना चाहिए । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- मेघ के निमित्त से उत्पन्न होनेवाले सूर्य के विकार के समान जीव के राग, द्वेष, मद आदि जो कुछ भी विकार अर्थात् विभाव भाव हैं, वे सब कर्मजनित हैं; ऐसा जानना चाहिए । </p> | ||
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Latest revision as of 10:25, 15 May 2009
रागादि भाव कर्मजनित हैं -
विकारा: सन्ति ये केचिद्राग-द्वेष-मदादय: ।
कर्मजास्तेsखिला ज्ञेयास्तिग्मांशोरिव मेघजा: ।।१०५।।
अन्वय :- मेघजा: तिग्म-अंशो: इव (जीवस्य) केचित् राग-द्वेष-मोहादय: विकारा: सन्ति; ते अखिला: कर्मजा: ज्ञेया: ।
सरलार्थ :- मेघ के निमित्त से उत्पन्न होनेवाले सूर्य के विकार के समान जीव के राग, द्वेष, मद आदि जो कुछ भी विकार अर्थात् विभाव भाव हैं, वे सब कर्मजनित हैं; ऐसा जानना चाहिए ।