योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 105
From जैनकोष
रागादि भाव कर्मजनित हैं -
विकारा: सन्ति ये केचिद्राग-द्वेष-मदादय: ।
कर्मजास्तेsखिला ज्ञेयास्तिग्मांशोरिव मेघजा: ।।१०५।।
अन्वय :- मेघजा: तिग्म-अंशो: इव (जीवस्य) केचित् राग-द्वेष-मोहादय: विकारा: सन्ति; ते अखिला: कर्मजा: ज्ञेया: ।
सरलार्थ :- मेघ के निमित्त से उत्पन्न होनेवाले सूर्य के विकार के समान जीव के राग, द्वेष, मद आदि जो कुछ भी विकार अर्थात् विभाव भाव हैं, वे सब कर्मजनित हैं; ऐसा जानना चाहिए ।