मन! मेरे राग भाव निवार: Difference between revisions
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मन! मेरे राग भाव निवार
राग चिक्कनतैं लगत है, कर्मधूलि अपार।।मन. ।।
राग आस्रव मूल है, वैराग्य संवर धार ।
जिन न जान्यो भेद यह, वह गयो नरभव हार ।।मन. ।।१ ।।
दान पूजा शील जप तप, भाव विविध प्रकार ।
राग विन शिव सुख करत हैं, रागतैं संसार ।।मन. ।।२ ।।
वीतराग कहा कियो, यह बात प्रगट निहार ।
सोइ कर सुख हेत `द्यानत', शुद्ध अनुभव सार ।।मन. ।।३ ।।