चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:53, 16 February 2008
चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव
सुखको दिवैया हित भैया नाहिं छतियाँ।।चाहत. ।।
दुखतैं डरै है पै भरै है अघसेती घट,
दुखको करैया भय दैया दिन रतियाँ ।।चाहत. ।।१ ।।
बोयो है बँबूल मूल खायो चाहै अंब भूल,
दाह ज्वर नासनिको सोवै सेज ततियां ।।चाहत. ।।२ ।।
`द्यानत' है सुख राई दुख मेरुकी कमाई,
देखो राई चेतनकी चतुराई बतियां ।।चाहत. ।।३ ।।