झूठा सपना यह संसार: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:53, 16 February 2008
झूठा सपना यह संसार
दीसत है विनसत नहिं बार ।।झूठा. ।।
मेरा घर सवतैं सिरदार, रह न सके पल एक मँझार।।झूठा. ।।१ ।।
मेरे धन सम्पति अति सार, छांडि चलै लागै न अबार।।झूठा.।।२ ।।
इन्द्री विषै विषैफल धार, मीठे लगैं अन्त खयकार ।।झूठा. ।।३ ।।
मेरो देह काम उनहार, सो तन भयो छिनक में छार ।।झूठा. ।।४ ।।
जननी तात भ्रात सुत नार, स्वारथ बिना करत हैं ख्वार ।।झूठा. ।।५ ।।
भाई शत्रु होंहिं अनिवार, शत्रु भये भाई बहु प्यार ।।झूठा. ।।६ ।।
`द्यानत' सुमरन भजन अधार, आग लगैं कछु लेहु निकार ।।झूठा.।।७ ।।