तू तो समझ समझ रे!: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:55, 16 February 2008
तू तो समझ समझ रे!
निशिदिन विषय भोग लपटाना, धरम वचन न सुहाई ।।तू तो. ।।
कर मनका लै आसन माड्यो, वाहिज लोक रिझाई ।
कहा भयो बक-ध्यान धरेतैं, जो मन थिर न रहाई ।।तू तो. ।।१ ।।
मास मास उपवास किये तैं, काया बहुत सुखाई ।
क्रोध मान छल लोभ न जीत्या, कारज कौन सराई ।।तू तो. ।।२ ।।
मन वच काय जोग थिर करकैं, त्यागो विषयकषाई ।
`द्यानत' सुरग मोख सुखदाई, सद्गुरु सीख बताई ।।तू तो. ।।३ ।।