निज जतन करो गुन-रतननिको, पंचेन्द्रीविषय: Difference between revisions
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निज जतन करो गुन-रतननिको, पंचेन्द्री-विषय
सत्य कोट खाई करुनामय, वाग विराग छिमा भुवि भर।।निज. ।।१ ।।
जीव भूप तन नगर बसै है, तहँ कुतवाल धरमको कर।।निज.।।२ ।।
`द्यानत' जब भंडार न जावै, तब सुख पावै साहु अमर।।निज.।।३ ।।