आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी: Difference between revisions
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आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी
जा लक्ष्मी के सब अभिलाखी । सो साधन करदम वत नाखी।।१ ।।
सब जग जीत लियो जिन नारी । सो साधन नागनिवत छारी ।।२ ।।
विषयन सब जगजिय वश कीने । ते साधन विषवत तज दीने ।।३ ।।
भुविको राज चहत सब प्रानी । जीरन तृणवत त्यागत ध्यानी ।।४ ।।
शत्रु मित्र दुखसुख सम मानै । लाभ अलाभ बराबर जानै ।।५ ।।
छहोंकाय पीहरव्रत धारें । सबको आप समान निहारें ।।६ ।।
इह आरती पढ़ै जो गावै । `द्यानत' सुरगमुकति सुख पावै ।।७ ।।