लोक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
No edit summary |
||
Line 19: | Line 19: | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong> [[ | <li><strong> [[लोकसामान्य निर्देश]]</strong><br /> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li>लोकाकाश व लोकाकाश में द्रव्यों का अवगाह। - देखें [[ आकाश#3 | आकाश - 3]]।<br /> | <li>लोकाकाश व लोकाकाश में द्रव्यों का अवगाह। - देखें [[ आकाश#3 | आकाश - 3]]।<br /> | ||
Line 25: | Line 25: | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.1 | लोक का लक्षण।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.2 | लोक का आकार।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.3 | लोक का विस्तार]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.4 | वातवलयों का परिचय।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.4.1 | वातवलय सामान्य परिचय।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.4.2 | तीन वातवलयों का अवस्थान क्रम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.4.3 | पृथिवियों के साथ वातवलयों का स्पर्श।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.4.4 | वातवलयों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.5 | लोक के आठ रुचक प्रदेश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.6 | लोक विभाग निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.7 | त्रस व स्थावर लोक निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.8 | अधोलोक सामान्य परिचय।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.9 | भावनलोक निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.10 | व्यंतरलोक निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.11 | मध्य लोक निर्देश।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.11.1 | द्वीप-सागर निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.11.2 | तिर्यक्लोक मनुष्यलोकादि विभाग।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.12 | ज्योतिष लोक सामान्य निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 71: | Line 71: | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="13"> | <ol start="13"> | ||
<li><strong>[[ | <li><strong>[[लोकसामान्य निर्देश#2.13 | ऊर्ध्वलोक सामान्य परिचय।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 133: | Line 133: | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong> [[अन्य द्वीप | <li><strong> [[अन्य द्वीप सागर निर्देश]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.1 | लवणसागर निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.2 | धातकीखंड निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.3 | कालोदसमुद्र निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.4 | पुष्करद्वीप निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.5 | नंदीश्वरद्वीप निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.6 | कुंडलवरद्वीप निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.7 | रुचकवरद्वीप निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[अन्य द्वीप | <li><strong>[[अन्य द्वीप सागर निर्देश#4.8 | स्वयंभूरमण समुद्र निर्देश।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong> [[द्वीप | <li><strong> [[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.1 | द्वीप, समुद्रों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 163: | Line 163: | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.2 | जंबूद्वीप के क्षेत्रों के नाम।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.2.1 | जंबूद्वीप के महाक्षेत्रों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.2.2 | विदेह के 32 क्षेत्र व उनके प्रधाननगर।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 177: | Line 177: | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3 | जंबूद्वीप के पर्वतों के नाम]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3.1 | कुलाचल आदि के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3.2 | नाभिगिरि तथा उनके रक्षक देव।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3.3 | विदेह के वक्षारों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3.4 | गजदंतों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3.5 | यमक पर्वतों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.3.6 | दिग्गजेंद्रों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4 | जंबूद्वीप के पर्वतीय कूट व तन्निवासी देव।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.1 | भरत विजयार्ध।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.2 | ऐरावत विजयार्ध।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.3 | विदेह के 32 विजयार्ध।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.4 | हिमवान्।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.5 | महाहिमवान्।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.6 | निषध पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.7 | नील पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.8 | रुक्मि पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.9 | शिखरी पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.10 | विदेह के 16 वाक्षर।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.11 | सौमनस गजदंत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.12 | विद्युत्प्रभ जगदंत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.13 | गंधमादन गजदंत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.4.14 | माल्यवान् गजदंत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.5 | सुमेरु पर्वत के वनों में कूटों के नाम व देव।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.6 | जंबूद्वीप के द्रहों व वापियों के नाम।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.6.1 | हिमवान् आदि कुलाचलों पर।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.6.2 | सुमेरु पर्वत के वनों में।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.6.3 | देव व उत्तर कुरु में।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.7 | महा द्रह के कूटों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.8 | जंबूद्वीप की नदियों के नाम।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.8.1 | भरतादि महाक्षेत्रों में।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.8.2 | विदेह के 32 क्षेत्रों में।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.8.3 | विदेह क्षेत्र की 12 विभंगा नदियों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.9 | लवण सागर के पर्वत पाताल व तन्निवासी देव।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.10 | मानुषोत्तर पर्वत के कूटों व देवों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.11 | नंदीश्वर द्वीप की वापियाँ व उनके देव।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.12 | कुंडलवर पर्वत के कूटों व देवों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.13 | रुचक पर्वत के कूटों व देवों के नाम।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि#5.14 | पर्वतों आदि के वर्ण।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong> [[द्वीप | <li><strong> [[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.1 | द्वीप-सागरों का सामान्य विस्तार।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.2 | लवणसागर व उसके पातालादि।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.3 | अढाई द्वीप के क्षेत्रों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.3.1 | जंबूद्वीप के क्षेत्र।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.3.2 | घातकी खंड के क्षेत्र।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.3.3 | पुष्करार्ध के क्षेत्र।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.4 | जंबूद्वीप के पर्वतों व कूटों का विस्तार]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.4.1 | लंबे पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.4.2 | गोल पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.4.3 | पर्वतीय व अन्यकूट।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.4.4 | नदी, कुंड, द्वीप व पांडुक शिला आदि।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.4.5 | अढाई द्वीप की सर्व वेदियाँ।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5 | शेष द्वीपों के पर्वतों व कूटों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5.1 | धातकी खंड के पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5.2 | पुष्कर द्वीप के पर्वत व कूट।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5.3 | नंदीश्वर द्वीप के पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5.4 | कुंडलवर पर्वत व उसके कूट।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5.5 | रुचकवर पर्वत व उसके कूट।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.5.6 | स्वयंभूरमण पर्वत।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.6 | अढाई द्वीप के वनखंडों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.6.1 | जंबूद्वीप के वनखंड।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.6.2 | धातकी खंड के वनखंड।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.6.3 | पुष्करार्ध द्वीप के वनखंड।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.6.4 | नंदीश्वर द्वीप के वन।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.7 | अढाई द्वीप की नदियों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.7.1 | जंबूद्वीप की नदियाँ।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.7.2 | धातकी खंड की नदियाँ।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.7.3 | पुष्कर द्वीप की नदियाँ।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.8 | मध्यलोक की वापियों व कुंडों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.8.1 | जंबूद्वीप संबंधी।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.8.2 | अन्यद्वीप संबंधी।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[द्वीप | <li><strong>[[द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार#6.9 | अढाई द्वीप के कमलों का विस्तार।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 345: | Line 345: | ||
<li><strong> [[लोक के चित्र]]</strong><br /> | <li><strong> [[लोक के चित्र]]</strong><br /> | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
<p> | <p>वैदिक धर्माभिमत भूगोल</p> | ||
</blockquote> | </blockquote> | ||
<ol> | <ol> | ||
Line 361: | Line 360: | ||
</ol> | </ol> | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
<p> | <p>बौद्ध धर्माभिमत भूगोल</p> | ||
</blockquote> | </blockquote> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.5 | | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.5 | भूमंडल]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.6 | जंबू द्वीप]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.6 | जंबू द्वीप]]</strong><br /> | ||
Line 379: | Line 377: | ||
</ol> | </ol> | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
<p> | <p>अधोलोक </p> | ||
<ol start="10"> | <ol start="10"> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.10 | अधोलोक सामान्य]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.10 | अधोलोक सामान्य]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.11 | प्रत्येक पटल में इंद्रक व | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.11 | प्रत्येक पटल में इंद्रक व श्रेणीबद्ध ]]</strong><br /> | ||
< | <ul> | ||
<li>रत्नप्रभा पृथिवी<br /> | <li>रत्नप्रभा पृथिवी<br /> | ||
</li> | </li> | ||
Line 392: | Line 389: | ||
<li>भावन लोक<br /> | <li>भावन लोक<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 426: | Line 423: | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.13 | जंबू द्वीप।]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.13 | जंबू द्वीप।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.14 | भरत क्षेत्र। | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.14 | भरत क्षेत्र। गंगानदी।]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 437: | Line 434: | ||
</ol> | </ol> | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
<p> | <p>सुमेरु पर्वत</p> | ||
<ol start="16"> | <ol start="16"> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.16 | सुमेरु पर्वत सामान्य व चूलिका।]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.16 | सुमेरु पर्वत सामान्य व चूलिका।]]</strong><br /> | ||
Line 469: | Line 466: | ||
</ol> | </ol> | ||
<blockquote> | <blockquote> | ||
<p>29-32 जंबू व शाल्मली वृक्ष स्थल | <p>29-32 जंबू व शाल्मली वृक्ष स्थल</p> | ||
<ol start="29"> | <ol start="29"> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.29 | सामान्य स्थल।]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.29 | सामान्य स्थल।]]</strong><br /> | ||
Line 482: | Line 478: | ||
</ol> | </ol> | ||
<p> | <p>लवण सागर</p> | ||
<ol start="33"> | <ol start="33"> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.33 | सागर तल ]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.33 | सागर तल ]]</strong><br /> | ||
Line 504: | Line 499: | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.40 | रुचकवर पर्वत व द्वीप। (प्रथम दृष्टि)]]</strong><br /> | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.40 | रुचकवर पर्वत व द्वीप। (प्रथम दृष्टि)]]</strong><br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li><strong>[[लोक के चित्र#7.41 | रुचकवर पर्वत व द्वीप। ( | <li><strong>[[लोक के चित्र#7.41 | रुचकवर पर्वत व द्वीप। (द्वितीय दृष्टि) ]]</strong></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</blockquote> | </blockquote> | ||
Line 520: | Line 515: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> आकाश का वह भाग जहाँ जीव आदि छहों द्रव्य विद्यमान होते हैं । यह अनादि, असंख्यातप्रदेशी तथा लोकाकाश संज्ञक होता है । इसका आकार नीचे, ऊपर और मध्य में क्रमश: वेत्रासन, मृदंग, और झालर सदृश है । इस प्रकार इसके तीन भेद हैं― अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक । यह कमर पर हाथ रखकर और पैर फैलाकर अचल | <p> आकाश का वह भाग जहाँ जीव आदि छहों द्रव्य विद्यमान होते हैं । यह अनादि, असंख्यातप्रदेशी तथा लोकाकाश संज्ञक होता है । इसका आकार नीचे, ऊपर और मध्य में क्रमश: वेत्रासन, मृदंग, और झालर सदृश है । इस प्रकार इसके तीन भेद हैं― अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक । यह कमर पर हाथ रखकर और पैर फैलाकर अचल खड़े <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span>के आकार के समान होता है । विस्तार की अपेक्षा यह अधोलोक में सात रज्जु है । इसके पश्चात् क्रमश: ह्रास होते-होते मध्यलोक में एक रज्जु और आगे प्रदेश वृद्धि होने से ब्रह्मब्रह्मोत्तर स्वर्ग के समीप पाँच रज्जू विस्तृत रह जाता है । तीनों लोकों की लांबाई चौदह रज्जू इसमें सात रज्जू सुमेरु पर्वत के नीचे तनुवातवलय तक और सात रज्जू ऊपर लोकाग्रपर्यंत तनुवातवलय तक है । चित्रा पृथिवी से आरंभ होकर पहला राजू शर्कराप्रभा पृथिवी के अधोभाग में समाप्त होता है । इसके आगे दूसरा आरंभ होकर वालुकाप्रभा के अधोभाग में समाप्त होता है । इसी प्रकार तीसरा राजू पंकप्रभा के अधोभाग में, चौथा धूमप्रभा के अधोभाग में, पाँचवाँ तम प्रभा के तम:भाग के अधोभाग में, छठा महातम:प्रभा के अंतभाग में तथा सातवाँ राजू लोक के तलगाग में समाप्त होता है । रत्नप्रभा प्रथम पृथिवी के तीन भाग हैं― खर, पंक और अब्बहुल । इनमें खर भाग सोलह हजार योजन, पंकभाग चौरासी हजार योजन और अब्बहुल भाग अस्सी हजार योजन मोटा है । ऊर्ध्व लोक में ऐशान स्वर्ग तक डेढ़ रज्जू, माहेंद्र स्वर्ग तक पुन: डेढ़ रज्जु पश्चात् कापिष्ठ स्वर्ग तक एक, सहस्रार स्वर्ग तक फिर एक, इसके आगे आरण अच्युत स्वर्ग तक एक और इसके ऊपर ऊर्ध्वलोक के अंत तक एक रज्जू । इस प्रकार सात रज्जु प्रमाण ऊंचाई है । इसे सब आर से धनोदधि, धनवान और तनुवात ये तीनों वातवलय घेरकर स्थित है । घनोदधि-वातवलय गोमूत्रवर्ण के समान, घनवातवलय मूंग वर्ण का और तनुवातवलय अनेक वर्ण वाला है । ये वलय दंडाकार लंबे और घनीभूत होकर ऊपर-नीचे चारों ओर लोक के अंत तक है । अधोलोक में प्रत्येक का विस्तार बीस-बीस हजार याजन और लोक के ऊपर कुछ कम एक योजन हैं । जब ये दंडाकार नहीं रहते तब क्रमश: सात पाँच और चार योजन विस्तृत होते हैं । मध्यलोक में इनका विस्तार क्रमश पाँच चार और तीन योजन रह जाता हे । ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के करा में ये क्रमश सात पांच और चार योजन विस्तृत हो जाते हैं । पुन: प्रदेशों में हानि होने से मोक्षस्थान के पास क्रमश पाँच और तीन योजन विस्तृत रह जाते हैं । इसके पश्चात घनोदधिवातवलय आधा योजना, घनवातवलय उससे आधा और तनुवातवलय उससे कुछ कम विस्तृत है । तनुवातवलय के अंत तक तिर्यग्लोक है । इस लोक की ऊपरी और नीचे की अवधि सुमेरु पर्वत द्वारा निश्चित होती है और यह सुमेरु पर्वत पृथिवी तक में एक हजार योजन नीचे है तथा चित्रा पृथिवी के समतल से लेकर निन्यानवे हजार योजन ऊँचाई तक है । असंख्यात द्वीप और समुद्रों से वेष्टित गोल जंबूद्वीप इसी मध्यलोक में है । इस जंबूद्वीप में सात क्षेत्र, एक मेरु, दो कुरु, जंबू और शाल्मली दो वृक्ष, छ: कुलाचल, छ: महासरोवर, चौदह महानदियाँ, बारह विभंगा नदियाँ, बीस वक्षारगिरि, चौंतीस राजधानी, चौंतीस रूप्याचल, चौंतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएं, चार नाभिगिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधरों के नगर है । जंबूद्वीप से दूने क्षेत्रों वाला धातकीखंडद्वीप तथा दूने पर्वतों और क्षेत्र आदि से युक्त पुष्करार्ध इस प्रकार ढाई द्वीप तक <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span>लोक है । <span class="GRef"> महापुराण 4.13-15, 40-46, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.30, 24.70, 31.15, 105, 109-110, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.4-16, 33-41, 48-49, 5.1-12, 577, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 22.68, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 88, 18.126 </span></p> | ||
Revision as of 16:15, 12 October 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- लोकस्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन
- लोकसामान्य निर्देश
- लोकाकाश व लोकाकाश में द्रव्यों का अवगाह। - देखें आकाश - 3।
- लोक का लक्षण।
- लोक का आकार।
- लोक का विस्तार
- वातवलयों का परिचय।
- लोक के आठ रुचक प्रदेश।
- लोक विभाग निर्देश।
- त्रस व स्थावर लोक निर्देश।
- अधोलोक सामान्य परिचय।
- भावनलोक निर्देश।
- व्यंतरलोक निर्देश।
- मध्य लोक निर्देश।
- ज्योतिष लोक सामान्य निर्देश।
- ज्योतिष विमानों की संचारविधि। - देखें ज्योतिष - 2.7।
- लोकाकाश व लोकाकाश में द्रव्यों का अवगाह। - देखें आकाश - 3।
- जंबूद्वीप निर्देश
- जंबूद्वीप सामान्य निर्देश।
- जंबूद्वीप में क्षेत्र, पर्वत, नदी, आदि का प्रमाण।
- क्षेत्र निर्देश।
- कुलाचल पर्वत निर्देश।
- विजयार्ध पर्वत निर्देश।
- सुमेरु पर्वत निर्देश।
- पांडुक शिला निर्देश।
- अन्य पर्वतों का निर्देश।
- द्रह निर्देश।
- कुंड निर्देश।
- नदी निर्देश।
- देवकुरु व उत्तरकुरु निर्देश।
- जंबू व शाल्मली वृक्षस्थल।
- विदेह के क्षेत्र निर्देश।
- लोकस्थित कल्पवृक्ष व कमलादि। - देखें वृक्ष । 1/4
- लोकस्थित चैत्यालय।- देखें चैत्य चैत्यालय - 3।
- जंबूद्वीप सामान्य निर्देश।
- अन्य द्वीप सागर निर्देश
- द्वीप पर्वतों आदि के नाम रस आदि
- द्वीप, समुद्रों के अधिपति देव - देखें व्यंतर - 4.7।
- द्वीप, समुद्रों आदि के नामों की अन्वर्थता। - देखें वह वह नाम ।
- जंबूद्वीप के पर्वतों के नाम
- जंबूद्वीप के पर्वतीय कूट व तन्निवासी देव।
- सुमेरु पर्वत के वनों में कूटों के नाम व देव।
- जंबूद्वीप के द्रहों व वापियों के नाम।
- महा द्रह के कूटों के नाम।
- जंबूद्वीप की नदियों के नाम।
- लवण सागर के पर्वत पाताल व तन्निवासी देव।
- मानुषोत्तर पर्वत के कूटों व देवों के नाम।
- नंदीश्वर द्वीप की वापियाँ व उनके देव।
- कुंडलवर पर्वत के कूटों व देवों के नाम।
- रुचक पर्वत के कूटों व देवों के नाम।
- पर्वतों आदि के वर्ण।
- द्वीप, समुद्रों के अधिपति देव - देखें व्यंतर - 4.7।
- द्वीप क्षेत्र पर्वत आदि का विस्तार
- द्वीप-सागरों का सामान्य विस्तार।
- लवणसागर व उसके पातालादि।
- अढाई द्वीप के क्षेत्रों का विस्तार।
- जंबूद्वीप के पर्वतों व कूटों का विस्तार
- शेष द्वीपों के पर्वतों व कूटों का विस्तार।
- अढाई द्वीप के वनखंडों का विस्तार।
- अढाई द्वीप की नदियों का विस्तार।
- मध्यलोक की वापियों व कुंडों का विस्तार।
- अढाई द्वीप के कमलों का विस्तार।
- द्वीप-सागरों का सामान्य विस्तार।
- लोक के चित्र
वैदिक धर्माभिमत भूगोल
बौद्ध धर्माभिमत भूगोल
अधोलोक
- अधोलोक सामान्य
- प्रत्येक पटल में इंद्रक व श्रेणीबद्ध
- रत्नप्रभा पृथिवी
- अब्बुहल भाग में नरकों के पटल
- भावन लोक
- रत्नप्रभा पृथिवी
- ज्योतिष लोक
- मध्यलोक में चरज्योतिष विमानों का अवस्थान।
- ज्योतिष विमानों का आकार।
- अचर ज्योतिष विमानों का अवस्थान।
- ज्योतिष विमानों की संचारविधि।
- मध्यलोक में चरज्योतिष विमानों का अवस्थान।
- ऊर्ध्व लोक
- पद्मद्रह।- देखें चित्र सं - 24।
सुमेरु पर्वत
- नाभिगिरि पर्वत
- गजदंत पर्वत
- यमक व कांचन गिरि
- पद्म द्रह
- पद्म द्रह के मध्यवर्ती कमल
- देव कुरु व उत्तर कुरु
- विदेह का कच्छा क्षेत्र
- [[लोक के चित्र#7.28 | पूर्वापर विदेह- देखें चित्र सं - 13]]
29-32 जंबू व शाल्मली वृक्ष स्थल
लवण सागर
- अधोलोक सामान्य
पुराणकोष से
आकाश का वह भाग जहाँ जीव आदि छहों द्रव्य विद्यमान होते हैं । यह अनादि, असंख्यातप्रदेशी तथा लोकाकाश संज्ञक होता है । इसका आकार नीचे, ऊपर और मध्य में क्रमश: वेत्रासन, मृदंग, और झालर सदृश है । इस प्रकार इसके तीन भेद हैं― अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक । यह कमर पर हाथ रखकर और पैर फैलाकर अचल खड़े महापुराण के आकार के समान होता है । विस्तार की अपेक्षा यह अधोलोक में सात रज्जु है । इसके पश्चात् क्रमश: ह्रास होते-होते मध्यलोक में एक रज्जु और आगे प्रदेश वृद्धि होने से ब्रह्मब्रह्मोत्तर स्वर्ग के समीप पाँच रज्जू विस्तृत रह जाता है । तीनों लोकों की लांबाई चौदह रज्जू इसमें सात रज्जू सुमेरु पर्वत के नीचे तनुवातवलय तक और सात रज्जू ऊपर लोकाग्रपर्यंत तनुवातवलय तक है । चित्रा पृथिवी से आरंभ होकर पहला राजू शर्कराप्रभा पृथिवी के अधोभाग में समाप्त होता है । इसके आगे दूसरा आरंभ होकर वालुकाप्रभा के अधोभाग में समाप्त होता है । इसी प्रकार तीसरा राजू पंकप्रभा के अधोभाग में, चौथा धूमप्रभा के अधोभाग में, पाँचवाँ तम प्रभा के तम:भाग के अधोभाग में, छठा महातम:प्रभा के अंतभाग में तथा सातवाँ राजू लोक के तलगाग में समाप्त होता है । रत्नप्रभा प्रथम पृथिवी के तीन भाग हैं― खर, पंक और अब्बहुल । इनमें खर भाग सोलह हजार योजन, पंकभाग चौरासी हजार योजन और अब्बहुल भाग अस्सी हजार योजन मोटा है । ऊर्ध्व लोक में ऐशान स्वर्ग तक डेढ़ रज्जू, माहेंद्र स्वर्ग तक पुन: डेढ़ रज्जु पश्चात् कापिष्ठ स्वर्ग तक एक, सहस्रार स्वर्ग तक फिर एक, इसके आगे आरण अच्युत स्वर्ग तक एक और इसके ऊपर ऊर्ध्वलोक के अंत तक एक रज्जू । इस प्रकार सात रज्जु प्रमाण ऊंचाई है । इसे सब आर से धनोदधि, धनवान और तनुवात ये तीनों वातवलय घेरकर स्थित है । घनोदधि-वातवलय गोमूत्रवर्ण के समान, घनवातवलय मूंग वर्ण का और तनुवातवलय अनेक वर्ण वाला है । ये वलय दंडाकार लंबे और घनीभूत होकर ऊपर-नीचे चारों ओर लोक के अंत तक है । अधोलोक में प्रत्येक का विस्तार बीस-बीस हजार याजन और लोक के ऊपर कुछ कम एक योजन हैं । जब ये दंडाकार नहीं रहते तब क्रमश: सात पाँच और चार योजन विस्तृत होते हैं । मध्यलोक में इनका विस्तार क्रमश पाँच चार और तीन योजन रह जाता हे । ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर स्वर्ग के करा में ये क्रमश सात पांच और चार योजन विस्तृत हो जाते हैं । पुन: प्रदेशों में हानि होने से मोक्षस्थान के पास क्रमश पाँच और तीन योजन विस्तृत रह जाते हैं । इसके पश्चात घनोदधिवातवलय आधा योजना, घनवातवलय उससे आधा और तनुवातवलय उससे कुछ कम विस्तृत है । तनुवातवलय के अंत तक तिर्यग्लोक है । इस लोक की ऊपरी और नीचे की अवधि सुमेरु पर्वत द्वारा निश्चित होती है और यह सुमेरु पर्वत पृथिवी तक में एक हजार योजन नीचे है तथा चित्रा पृथिवी के समतल से लेकर निन्यानवे हजार योजन ऊँचाई तक है । असंख्यात द्वीप और समुद्रों से वेष्टित गोल जंबूद्वीप इसी मध्यलोक में है । इस जंबूद्वीप में सात क्षेत्र, एक मेरु, दो कुरु, जंबू और शाल्मली दो वृक्ष, छ: कुलाचल, छ: महासरोवर, चौदह महानदियाँ, बारह विभंगा नदियाँ, बीस वक्षारगिरि, चौंतीस राजधानी, चौंतीस रूप्याचल, चौंतीस वृषभाचल, अड़सठ गुहाएं, चार नाभिगिरि और तीन हजार सात सौ चालीस विद्याधरों के नगर है । जंबूद्वीप से दूने क्षेत्रों वाला धातकीखंडद्वीप तथा दूने पर्वतों और क्षेत्र आदि से युक्त पुष्करार्ध इस प्रकार ढाई द्वीप तक महापुराण लोक है । महापुराण 4.13-15, 40-46, पद्मपुराण 3.30, 24.70, 31.15, 105, 109-110, हरिवंशपुराण 4.4-16, 33-41, 48-49, 5.1-12, 577, पांडवपुराण 22.68, वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 88, 18.126