निरखत सुख पायौ जिन मुखचन्द: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: निरखत सुख पायौ जिन मुखचन्द ।।टेक. ।।<br> मोह महातम नाश भयौ है, उर अम्बुज प्र...) |
No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:दौलतरामजी]] | [[Category:दौलतरामजी]] | ||
[[Category:देव भक्ति ]] |
Latest revision as of 03:03, 16 February 2008
निरखत सुख पायौ जिन मुखचन्द ।।टेक. ।।
मोह महातम नाश भयौ है, उर अम्बुज प्रफुलायौ ।
ताप नस्यौ बढि उदधि अनन्द।।१ ।।निरखत. ।।
चकवी कुमति बिछुर अति विलखै, आतमसुधा स्रवायौ ।
शिथिल भए सब विधिगन फन्द।।२ ।।निरखत. ।।
विकट भवोदधिको तट निकट्यौ, अघतरुमूल नसायौ ।
`दौल' लह्यौ अब सुपद स्वछन्द।।३ ।।निरखत. ।।