प्यारी लागै म्हाने जिन छवि थारी: Difference between revisions
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Latest revision as of 03:05, 16 February 2008
प्यारी लागै म्हाने जिन छवि थारी ।।टेक ।।
परम निराकुलपद दरसावत, वर विरागताकारी ।
पट भूषन बिन पै सुन्दरता, सुरनरमुनिमनहारी ।।१ ।।
जाहि विलोकत भवि निज निधि लहि, चिरविभावता टारी ।
निरनिमेषतैं देख सचीपती, सुरता सफल विचारी ।।२ ।।
महिमा अकथ होत लख ताकी, पशु सम समकितधारी ।
`दौलत' रहो ताहि निरखनकी, भव भव टेव हमारी ।।३ ।।