जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी: Difference between revisions
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Latest revision as of 03:22, 16 February 2008
जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी ।।टेक. ।।
कर्मस्वभाव भाव चेतनको, भिन्न पिछानन सुमति जगी ।।जिन. ।।
निज अनुभूति सहज ज्ञायकता, सो चिर रुष तुष मैल-पगी ।
स्यादवाद-धुनि-निर्मल-जलतैं, विमल भई समभाव लगी।।१ ।।जिन. ।।
संशयमोहभरमता विघटी, प्रगटी आतमसोंज सगी ।
`दौल' अपूरब मंगल पायो, शिवसुख लेन होंस उमगी।।२ ।।जिन. ।।