घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन निशदिन: Difference between revisions
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Latest revision as of 06:54, 16 February 2008
घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन निशदिन, प्रभुजी का सुमिरन करले रे ।।
प्रभु सुमिरेतैं पाप कटत हैं, जनम मरन दुख हरले रे ।।१ ।।घड़ि ।।
मनवचकाय लगाय चरन चित, ज्ञान हिये विच धर ले रे ।।२ ।।घड़ि ।।
`दौलतराम' धर्मनौका चढ़ि, भवसागर तैं तिर ले रे ।।३ ।।घड़ि ।।