भवि देखि छबी भगवान की: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:55, 17 February 2008
(राग सारङ्ग)
भवि देखि छबी भगवान की ।।टेक ।।
सुन्दर सहज सोम आनन्दमय, दाता परम कल्यानकी ।।भवि. ।।
नासादृष्टि मुदित मुखवारिज, सीमा सब उपमान की ।
अंग अडोल अचल आसन दिढ़, वही दशा निज ध्यान की ।।१ ।।भवि. ।।
इस जोगासन जोगरीतिसौं, सिद्धि भई शिवथानकी ।
ऐसें प्रगट दिखावै मारग, मुद्रा धात पखान की ।।२ ।।भवि. ।।
जिस देखें देखन अभिलाषा, रहत न रंचक आनकी ।
तृपत होत `भूधर' जो अब ये, अंजुलि अम्रतपान की ।।३ ।।भवि. ।।