भवि देखि छबी भगवान की
From जैनकोष
(राग सारङ्ग)
भवि देखि छबी भगवान की ।।टेक ।।
सुन्दर सहज सोम आनन्दमय, दाता परम कल्यानकी ।।भवि. ।।
नासादृष्टि मुदित मुखवारिज, सीमा सब उपमान की ।
अंग अडोल अचल आसन दिढ़, वही दशा निज ध्यान की ।।१ ।।भवि. ।।
इस जोगासन जोगरीतिसौं, सिद्धि भई शिवथानकी ।
ऐसें प्रगट दिखावै मारग, मुद्रा धात पखान की ।।२ ।।भवि. ।।
जिस देखें देखन अभिलाषा, रहत न रंचक आनकी ।
तृपत होत `भूधर' जो अब ये, अंजुलि अम्रतपान की ।।३ ।।भवि. ।।