कांचन: Difference between revisions
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<Span class="HindiText">(1) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का नवम विमान । <span class="GRef"> महापुराण 8.2133 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.44-47 </span></br><span class="HindiText">(2) एक गुहा । यह रश्मिवेग मुनि की तपोभूमि है । यहीं श्रीधरा और यशोधरा आर्यिका उनके दर्शनार्थ आयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 59.233-235, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.83-84 </span></br><span class="HindiText">(3) अमररक्ष के महाबुद्धि और पराक्रमधारी पुत्रों द्वारा बसाये गये दस नगरों में नवा नगर । लक्ष्मण ने इस नगर को अपने आधीन किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.371-372, 94.3-9 </span></br><span class="HindiText">(4) समस्त ऋद्धियों और भोगों का दाता, वन-उपवन से विभूषित, लंका का एक द्वीप । <span class="GRef"> पद्मपुराण 48.115-116 </span></br><span class="HindiText">(5) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरियों में उंतीसवीं नगरी । <span class="GRef"> महापुराण63, 105, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.88 </span></br><span class="HindiText">(6) रुचकवर द्वीप के रुचकवर पर्वत के पूर्वदिशावर्ती आठ कूटों में दूसरा कूट । यहाँ वैजयंती देवी निवास करती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.699-705 </span></br><span class="HindiText">(7) मेरु पर्वत के सौमनस पर्वत पर स्थित सात कूटों में छठा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.221 </span></br><span class="HindiText">(8) धृतराष्ट्र और उसकी रानी गांधारी के सौ पुत्रों में सत्तानवेंवां पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 8.205 </span></br><span class="HindiText">(9) रुचकगिरि की उत्तर दिशा का एक कूट । यह वारुणी देवी की निवासभूमि है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.716 </span | <Span class="HindiText">(1) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का नवम विमान । <span class="GRef"> महापुराण 8.2133 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.44-47 </span></br><span class="HindiText">(2) एक गुहा । यह रश्मिवेग मुनि की तपोभूमि है । यहीं श्रीधरा और यशोधरा आर्यिका उनके दर्शनार्थ आयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 59.233-235, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.83-84 </span></br><span class="HindiText">(3) अमररक्ष के महाबुद्धि और पराक्रमधारी पुत्रों द्वारा बसाये गये दस नगरों में नवा नगर । लक्ष्मण ने इस नगर को अपने आधीन किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.371-372, 94.3-9 </span></br><span class="HindiText">(4) समस्त ऋद्धियों और भोगों का दाता, वन-उपवन से विभूषित, लंका का एक द्वीप । <span class="GRef"> पद्मपुराण 48.115-116 </span></br><span class="HindiText">(5) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरियों में उंतीसवीं नगरी । <span class="GRef"> महापुराण63, 105, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.88 </span></br><span class="HindiText">(6) रुचकवर द्वीप के रुचकवर पर्वत के पूर्वदिशावर्ती आठ कूटों में दूसरा कूट । यहाँ वैजयंती देवी निवास करती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.699-705 </span></br><span class="HindiText">(7) मेरु पर्वत के सौमनस पर्वत पर स्थित सात कूटों में छठा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.221 </span></br><span class="HindiText">(8) धृतराष्ट्र और उसकी रानी गांधारी के सौ पुत्रों में सत्तानवेंवां पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 8.205 </span></br><span class="HindiText">(9) रुचकगिरि की उत्तर दिशा का एक कूट । यह वारुणी देवी की निवासभूमि है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.716 </span> | ||
Revision as of 16:32, 22 July 2022
(1) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का नवम विमान । महापुराण 8.2133 हरिवंशपुराण 6.44-47
(2) एक गुहा । यह रश्मिवेग मुनि की तपोभूमि है । यहीं श्रीधरा और यशोधरा आर्यिका उनके दर्शनार्थ आयी थी । महापुराण 59.233-235, हरिवंशपुराण 27.83-84
(3) अमररक्ष के महाबुद्धि और पराक्रमधारी पुत्रों द्वारा बसाये गये दस नगरों में नवा नगर । लक्ष्मण ने इस नगर को अपने आधीन किया था । पद्मपुराण 5.371-372, 94.3-9
(4) समस्त ऋद्धियों और भोगों का दाता, वन-उपवन से विभूषित, लंका का एक द्वीप । पद्मपुराण 48.115-116
(5) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरियों में उंतीसवीं नगरी । महापुराण63, 105, हरिवंशपुराण 22.88
(6) रुचकवर द्वीप के रुचकवर पर्वत के पूर्वदिशावर्ती आठ कूटों में दूसरा कूट । यहाँ वैजयंती देवी निवास करती है । हरिवंशपुराण 5.699-705
(7) मेरु पर्वत के सौमनस पर्वत पर स्थित सात कूटों में छठा कूट । हरिवंशपुराण 5.221
(8) धृतराष्ट्र और उसकी रानी गांधारी के सौ पुत्रों में सत्तानवेंवां पुत्र । हरिवंशपुराण 8.205
(9) रुचकगिरि की उत्तर दिशा का एक कूट । यह वारुणी देवी की निवासभूमि है । हरिवंशपुराण 5.716