कांक्षा
From जैनकोष
द्रव्यसंग्रह टीका /41/171/4 इहलोकपरलोकाशारूपभोगाकांक्षानिदानत्यागेन केवलज्ञानाद्यनंतगुणव्यक्तिरूपमोक्षार्थं ज्ञानपूजातपश्चरणादिकरणं निष्कांक्षागुण: कथ्यते। ...इति व्यवहारनिष्कांक्षितगुणो विज्ञातव्य:। =इस लोक तथा परलोक संबंधी आशारूप भोगाकांक्षानिदान के त्याग के द्वारा केवलज्ञानादि अनंतगुणों की प्रगटतारूप मोक्ष के लिए ज्ञान, पूजा, तपश्चरण इत्यादि अनुष्ठानों का जो करना है, वही निष्कांक्षित गुण है। इस प्रकार व्यवहार निष्कांक्षित गुण का स्वरूप जानना चाहिए।
देखें नि:कांक्षित ।