सम्यगेकांत
From जैनकोष
राजवार्तिक अध्याय 1/6/7/35/24
तत्र सम्यगेकांतो हेतुविशेषसामर्थ्यापेक्षः प्रमाणप्ररूपितार्थैकदेशादेशः। एकात्मावधारणेन अंयाशेषनिराकरणप्रवणप्रणिधिर्मिथ्यैकांतः।
= हेतु विशेष की सामर्थ्य से अर्थात् सुयुक्ति युक्त रूप से, प्रमाण द्वारा प्ररूपित वस्तु के एकदेश को ग्रहण करनेवाला सम्यगेकांत है और एक धर्म का सर्वथा अवधारण करके अन्य धर्मों का निराकरण करनेवाला मिथ्या एकांत है।
सप्तभंगीतरंगिनी 73/11
तत्र सम्यगेकांतस्तावत्प्रमाणविषयीभूतानेकधर्मात्मकवस्तुनिष्ठैकधर्मगोचरो धर्मांतराप्रतिषेधकः। मिथ्यैकांतस्त्वेकधर्ममात्रावधारणेनांयशेषधर्मनिराकरणप्रवणः।
= सम्यगेकांत तो प्रमाण सिद्ध अनेक धर्मस्वरूप जो वस्तु है, उस वस्तु में जो रहनेवाला धर्म है, उस धर्म को अन्य धर्मों का निषेध न करके विषय करनेवाला है। और पदार्थों के एक ही धर्म का निश्चय करके अन्य संपूर्ण धर्मों का निषेध करने में जो तत्पर है वह मिथ्या-एकांत है। ।
अधिक जानकारी के लिये देखें एकांत - 1.3।