प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
From जैनकोष
प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
गरभ छमास अगाउ कनक नग सुरपति नगर बनावैं।।प्रभु. ।।
क्षीर उदधि जल मेरु सिंहासन, मल मल इन्द्र न्हुलावैं ।
दीक्षा समय पालकी बैठो, इन्द्र कहार कहावैं ।।प्रभु. ।।१ ।।
समोसरन रिध ज्ञान महातम, किहिविधि सरब बतावैं ।
आपन जातबात कहा शिव, बात सुनैं भवि जावैं ।।प्रभु. ।।२ ।।
पंच कल्यानक थानक स्वामी, जे तुम मन वच ध्यावैं ।
`द्यानत' तिनकी कौन कथा है, हम देखैं सुख पावैं ।।प्रभु. ।।३ ।।