अग्रस्थिति
From जैनकोष
धवला 14/5,6,320/367/4 जहण्णणिव्वत्तीए चरिमणिसेओ अग्गं णाम। तस्स ट्ठिदी जहण्णिया अग्गट्ठिदि त्ति घेत्तव्वा। जहण्णणिव्वत्ति त्ति भणिदं होदि। = जघन्य निर्वृत्ति के अंतिम निषेक की अग्रसंज्ञा है। उसकी स्थिति जघन्य अग्रस्थिति है।...जघन्य निवृत्ति (जघन्य आयुबंध) यह उक्त कथन का तात्पर्य है।
- कर्मों की स्थिति के सम्बन्ध में विशेष जाननेे के लिये देखें स्थिति ।