लोभ
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- आहार का एक दोष−देखें आहार - II.4.4।
- वसतिका का एक दोष−देखें वसतिका ।
- लोभ
राजवार्तिक/8/9/5/574/32 अनुग्रहप्रवणद्रव्याद्यभिकांक्षवेशो लोभः कृमिराग-कज्जल-कर्दम-हरिद्रारागसदृशश्चतुर्विधः। = धन आदि की तीव्र आकांक्षा या गृद्धि लोभ है। यह किरकिची रंग, काजल, कीचड़ और हलदी के रंग के समान चार प्रकार का है।
धवला 1/1, 1, 111/342/8 गर्हा कांक्षा लोभः। = गर्हा या कांक्षा को लोभ कहते हैं।
धवला 6/1, 9-1, 23/41/5 लोभो गृद्धिरित्येकोऽर्थः। = लोभ और गृद्धि एकार्थक हैं।
धवला 12/4, 2, 88/283/8 बाह्यार्थेषु ममेदं बुद्धिर्लोभः। = बाह्य पदार्थों में जो ‘यह मेरा है’ इस प्रकार अनुरागरूप बुद्धि होती है वह लोभ है।
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/112 युक्तस्थले धनव्ययाभावो लोभः, निश्चयेन निखिलपरिग्रहपरित्यागलक्षणनिरंजन-निजपरमात्मतत्त्वपरिग्रहात् अन्यत् परमाणुमात्रद्रव्यस्वीकारो लोभः। = योग्यस्थान पर धन व्यय का अभाव वह लोभ है; निश्चय से समस्त परिग्रह का परित्याग जिसका लक्षण है, ऐसे निरंजन निज परमात्म तत्त्व के परिग्रह से अन्य परमाणुमात्र द्रव्य का स्वीकार वह लोभ है।
- लोभ के भेद
राजवार्तिक/9/6/8/596/4 लोभश्चतुःप्रकारः−जीवनलोभ आरोग्यलोभ इंद्रियलोभ उपभोगलोभश्चेति, स प्रत्येकं द्विधा भिद्यते स्व-परविषयत्वात्। = लोभ चार प्रकार का है−जीवनलोभ, आरोग्यलोभ, इंद्रियलोभ, उपभोगलोभ। ये चारों भी प्रत्येक स्व पर विषय के भेद से दो-दो प्रकार हैं। ( चारित्रसार/62/5 )।; (इनके लक्षण देखें शौच )।
- अन्य संबंधित विषय
- लोभ कषाय के अन्य भेद।−देखें मोहनीय - 3।
- लोभ कषाय संबंधी विषय।−देखें कषाय ।
- लोभ व परिग्रह संज्ञा में अंतर।−देखें संज्ञा ।
- लोभ कषाय राग है।−देखें कषाय - 4।
- लोभ की इष्टता-अनिष्टता।−देखें राग - 4।
पुराणकोष से
चार कषायों में चौथी कषाय । इससे धन-संपत्ति पाने की तीव्र इच्छा बनी रहती है । इससे जीव संसार में भ्रमता है । पद्मपुराण 14.110