अंडर
From जैनकोष
धवला पुस्तक संख्या १४/५,६,९३/८६/५ ``तेसिं खंधाणं ववएसहरो तेसिं भवाणमवयवा वलंजुअकच्छउडपुव्वावरभागसमाणा अंडरं णाम।
= जो उन स्कन्धों (मूली, थूअर आदि) के अवयव हैं और जो वलंजुअकच्छउड के पूर्वापर भाग के समान हैं उन्हें अण्डर कहते हैं।
(विशेष देखे वनस्पति ३/७)।
धवला पुस्तक संख्या १४/५,६,९४/११२/५ ण च रस-रुहिर-मांससरुवंडराणं खंधावयवाणं तत्तो पुधभावेण अवट्ठाणमत्थि।
= स्कंन्धों के अवयव स्वरूप रस, रुधिर तथा मांस रूप अण्डरों का उससे पृथक् रूप (स्कन्ध से पृथक् रूप) अवस्थान नहीं पाया जाता।
अंतःकरण –
- देखे मन ।