संवृत
From जैनकोष
स.सि./२/३२/१८७/११ सम्यग्वृत: संवृत:। संवृत इति दुरुपलक्ष्यप्रदेश इत्युच्यते। = भले प्रकार से जो ढका हो उसे संवृत कहते हैं। यहाँ संवृत ऐसे स्थान को कहते हैं जो देखने में न आवे। (विशेष देखें - योनि ); (रा.वा./२/३२/३/१४१/२६)।
स.सि./२/३२/१८७/११ सम्यग्वृत: संवृत:। संवृत इति दुरुपलक्ष्यप्रदेश इत्युच्यते। = भले प्रकार से जो ढका हो उसे संवृत कहते हैं। यहाँ संवृत ऐसे स्थान को कहते हैं जो देखने में न आवे। (विशेष देखें - योनि ); (रा.वा./२/३२/३/१४१/२६)।