मैं निज आतम कब ध्याऊंगा
From जैनकोष
मैं निज आतम कब ध्याऊंगा
रागादिक परिनाम त्यागकै, समतासौं लौ लाऊंगा ।।
मन वच काय जोग थिर करकै, ज्ञान समाधि लगाऊंगा ।
कब हौं क्षिपकश्रेणि चढ़ि ध्याऊं, चारित मोह नशाऊंगा ।।१ ।।
चारों करम घातिया क्षय करि, परमातम पद पाऊंगा ।
ज्ञान दरश सुख बल भंडारा, चार अघाति बहाऊंगा ।।२ ।।
परम निरंजन सिद्ध शुद्धपद, परमानंद कहाऊंगा ।
`द्यानत' यह सम्पति जब पाऊं, बहुरि न जगमें आऊंगा ।।३ ।।