चौबीसौं को वंदना हमारी
From जैनकोष
चौबीसौं को वंदना हमारी
भवदुखनाशक, सुखपरकाशक, विघनविनाशक मंगलकारी।।१ ।।
तीनलोक तिहुँकालनिमाहीं, इन सम और नहीं उपगारी।।२ ।।
पंच कल्यानक महिमा लखकै, अद्भुत हरष लहैं नरनारी।।३ ।।
`द्यानत' इनकी कौन चलावै, बिंब देख भये सम्यकधारी ।।४ ।।