प्रभु तुम सुमरन ही में तारे
From जैनकोष
प्रभु तुम सुमरन ही में तारे
सूअर सिंह नौल वानरने, कहौ कौन व्रत धारे।।प्रभु. ।।
सांप जाप करि सुरपद पायो, स्वान श्याल भय जारे ।
भेक वोक गज अमर कहाये, दुरगति भाव विदारे ।।प्रभु. ।।१ ।।
भील चोर मातंग जु गनिका, बहुतनिके दुख टारे ।
चक्री भरत कहा तप कीनौ, लोकालोक निहारे ।।प्रभु. ।।२ ।।
उत्तम मध्यम भेद न कीन्हों, आये शरन उबारे ।
`द्यानत' राग दोष बिन स्वामी, पाये भाग हमारे ।।प्रभु. ।।३ ।।