समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन
From जैनकोष
समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन
स्यादवाद-अंकित सुखदायक, भाषी केवलज्ञानी ।।समझत. ।।
जास लखैं निरमल पद पावै, कुमति कुगतिकी हानी ।
उदय भया जिहिमें परगासी, तिहि जानी सरधानी ।।समझत. ।।१ ।।
जामें देव धरम गुरु वरनें, तीनौं मुकति निसानी ।
निश्चय देव धरम गुरु आतम, जानत विरला प्रानी ।।समझत. ।।२ ।।
या जगमांहि तुझे तारनको, कारन नाव बखानी ।
`द्यानत' सो गहिये निहचैसों, हूजे ज्यों शिवथानी ।।समझत. ।।३ ।।