विजया
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- अपर विदेहस्थ व प्रक्षेत्र की प्रधान नगरी।–देखें लोक - 5.2।
- रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी–देखें लोक - 5.13।
- भगवान् मल्लिनाथ की शासक यक्षिणी।–देखें तीर्थंकर - 5.3।
- नंदीश्वरद्वीप की दक्षिण वापी–देखें लोक - 5.11।
पुराणकोष से
(1) समवसरण के सप्तपर्ण वन की एक वापी । हरिवंशपुराण 57.33
(2) रुचकगिरि की ऐशान दिशा में स्थित रत्नकूट की एक देवी । हरिवंशपुराण 5.725
(3) अपरविदेहस्थ वप्रक्षेत्र की प्रधान नगरी । महापुराण 63. 208-216, हरिवंशपुराण 5.263
(4) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी के राजा की रानी । इसकी विनयश्री पुत्री थी जो हस्तिनापुर के राजा से विवाही गयी थी । हरिवंशपुराण 60.105-106
(5) रुचकवरगिरि की पूर्वदिशा में विद्यमान आठ कूटों में प्रथम वैडूर्यकूट की दिक्कुमारी देवी । हरिवंशपुराण 5.705
(6) नंदीश्वर द्वीप की दक्षिणदिशा में स्थित अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित एक वापी । हरिवंशपुराण 5.660
(7) एक यादव-कन्या । इसे पांडव-नकुल ने विवाहा था । हरिवंशपुराण 47. 18, पांडवपुराण 16.62
(8) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी की बत्तीसवीं नगरी । महापुराण 19.50, 53
(9) जंबूद्वीप के खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन की रानी । यह सुदर्शन बलभद्र की जननी थी । महापुराण 61.70
(10) एक शिविका । तीर्थंकर कुंथुनाथ इसी में बैठकर दीक्षार्थ बन गये थे । महापुराण 64.38
(11) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में पद्म देश में स्थित अश्वपुर नगर के राजा वज्रवीर्य की रानी । यह वज्रनाभि की जननी थी । महापुराण 73. 31-32
(12) जंबूद्वीप के हेमांगद देश में राजपुर नगर के राजा सत्यंधर की रानी । राजा सत्यंधर के मंत्री काष्ठांगारिक द्वारा मारे जाने के पूर्व ही यह गर्भावस्था में गरुडयंत्र पर बैठाकर उड़ा दी गयी थी । यंत्र श्मशान में नीचे आया । यह श्मशान में रही और श्मशान में ही इसके एक पुत्र हुआ । इसने लालन-पालन के लिए अपना पुत्र गंधोत्कट सेठ को दे दिया था । गंधोत्कट ने पुत्र का नाम जीवंधर रखा था । इसके पश्चात् यह दंडकारंय के एक आश्रम में रहने लगी थी । पुत्र को राज्य प्राप्त होने के पश्चात् इसने चंदना आर्या के समीप उत्कृष्ट संयम धारण कर लिया था । महापुराण 75.188-189, 221-228, 242-245, 250-251, 683-684 देखें जीवंधर
(13) अपराजित बलभद्र की रानी । सुमति इसकी पुत्री थी । महापुराण 63. 2-4
(14) पोदनपुर के राजा व्यानंद और रानी अंभोजमाला की पुत्री । यह राजा जितशत्रु की रानी तथा तीर्थंकर अजितनाथ की जननी थी । इसका अपर नाम विजयसेन था । महापुराण 48.19, पद्मपुराण - 5.60-63
(15) एक विद्या । यह रावण को प्राप्त थी । पद्मपुराण - 7.330-332
(16) छठे बलभद्र नंदिमित्र की जननी । पद्मपुराण - 20.238-239