ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 10 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
णत्थि विणा परिणामं अत्थो अत्थं विणेह परिणामो ।
दव्वगुणपज्जयत्थो अत्थो अत्थित्तणिव्वत्तो ॥10॥
अर्थ:
[इह] इस लोक में [परिणामं विना] परिणाम के बिना [अर्थ: नास्ति] पदार्थ नहीं है, [अर्थं विना] पदार्थ के बिना [परिणाम:] परिणाम नहीं है; [अर्थ:] पदार्थ [द्रव्यगुणपर्ययस्थ:] द्रव्य-गुण-पर्याय में रहने-वाला और [अस्तित्वनिर्वृत्त:] (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-मय) अस्तित्व से बना हुआ है ॥१०॥
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ परिणामं वस्तुस्वभावत्वेन निश्चिनोति -
न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तमालम्बते । वस्तुनो द्रव्यादिभि: परिणामात् पृथगुप-लम्भाभावान्नि:परिणामस्य खरशृङ्गकल्पत्वाद् दृश्यमानगोरसादिपरिणामविरोधाच्च । अन्तरेण वस्तु परिणामोऽपि न सत्तमालम्बते । स्वाश्रयभूतस्य वस्तुनोऽभावे निराश्रयस्य परिणामस्य शून्यत्वप्रसंगात् । वस्तु पुनरूर्ध्वतासामान्यलक्षणे द्रव्ये सहभाविविशेषलक्षणेषु गुणेषु क्रमभाविविशेष-लक्षणेषु पर्यायेषु व्यवस्थितमुत्पादव्ययध्रौव्यमयास्तित्वेन निर्वर्तितनिर्वृत्तिमच्च । अत: परिणामस्वभावमेव ॥१०॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
अब परिणाम वस्तु का स्वभाव है यह निश्चय करते हैं :-
परिणाम के बिना वस्तु अस्तित्व धारण नहीं करती, क्योंकि वस्तु द्रव्यादि के द्वारा (द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से) परिणाम से भिन्न अनुभव में (देखने में) नहीं आती, क्योंकि
- परिणाम रहित वस्तु गधे के सींग के समान है
- तथा उसका, दिखाई देने वाले गोरस इत्यादि (दूध, दही वगैरह) के परिणामों के साथ 1विरोध आता है ।
1यदि वस्तुको परिणाम रहित माना जावे तो गोरस इत्यादि वस्तुओंके दूध, दही आदि जो परिणाम प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं उनके साथ विरोध आयेगा
2कालकी अपेक्षासे स्थिर होनेको अर्थात् कालापेक्षित प्रवाहको ऊर्ध्वता अथवा ऊँचाई कहा जाता है । ऊर्ध्वतासामान्य अर्थात् अनादि- अनन्त उच्च (कालापेक्षित) प्रवाहसामान्य द्रव्य है