ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 37
From जैनकोष
332. यथौदारिकस्येन्द्रियैरुपलब्धिस्तथेतरेषां कस्मान्न भवतीत्यत आह –
332. जिस प्रकार इन्द्रियाँ औदारिक शरीरको जानती हैं उस प्रकार इतर शरीरोंको क्यों नहीं जानतीं ? अब इस बातको दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
परं परं सूक्ष्मम्।।37।।
आगे-आगेका शरीर सूक्ष्म है।।37।।
333. ‘पर’शब्दस्यानेकार्थवृत्तित्वेऽपि विवक्षातो व्यवस्थार्थगति:। पृथग्भूतानां, शरीराणां सूक्ष्मगुणेन वीप्सानिर्देश: क्रियते परम्परमिति। औदारिकं स्थूलम्, तत: सूक्ष्मं वैक्रियिकम्, तत: सूक्ष्मं आहारकम्, तत: सूक्ष्मं तैजसम्, तैजसात्कार्मणं सूक्ष्ममिति।।
333. पर शब्दके अनेक अर्थ हैं तो भी यहाँ विवक्षासे व्यवस्थारूप अर्थका ज्ञान होता है। यद्यपि शरीर अलग-अलग हैं तो भी उनमें सूक्ष्म गुणका अन्वय है यह दिखलानेके लिए ‘परम्परम्’ इस प्रकार वीप्सा निर्देश किया है। औदारिक शरीर स्थूल है। इससे वैक्रियिक शरीर सूक्ष्म है। इससे आहारक शरीर सूक्ष्म है। इससे तैजस शरीर सूक्ष्म है और इससे कार्मण शरीर सूक्ष्म है।