भाई! अब मैं ऐसा जाना
From जैनकोष
भाई! अब मैं ऐसा जाना
पुद्गल दरब अचेत भिन्न है, मेरा चेतन वाना।।भाई. ।।
कल्प अनन्त सहत दुख बीते, दुखकौं सुख कर माना ।
सुख दुख दोऊ कर्म अवस्था, मैं कर्मनतैं आना ।।भाई. ।।१ ।।
जहाँ भोर था तहाँ भई निशि, निशिकी ठौर बिहाना ।
भूल मिटी निजपद पहिचाना, परमानन्द-निधाना ।।भाई. ।।२ ।।
गूँगे का गुड़ खाँय कहैं किमि, यद्यपि स्वाद पिछाना ।
`द्यानत' जिन देख्या ते जानैं, मेंढक हंस पखाना ।।भाई. ।।३ ।।