योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 407
From जैनकोष
जिनलिंग-ग्रहण के योग्य पुरुष -
शान्तस्तप:क्षमोsकुत्सो वर्णेष्वेकतमस्त्रिषु ।
कल्याणाङ्गो नरो योग्यो लिङ्गस्य ग्रहणे मत: ।।४०७।।
अन्वय :- शान्त:, तप:क्षम:, अकुत्स:, त्रिषु वर्णेषु एकतम: कल्याणङ्ग: (च) नर: लिङ्गस्य ग्रहणे योग्य: मत: ।
सरलार्थ :- जो मनुष्य शान्त हैं, तप:श्चरण करने में समर्थ हैं, सर्व प्रकार के दोषों से रहित हैं, तीन वर्ण - ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य में से किसी एक वर्ण का धारक हैं, कल्याणरूप अर्थात् निरोग शरीर के धारक हैं और शरीर के सुंदर अंगोपांगों से सहित हैं; वे ही पुरुष जिनलिंग के ग्रहण करने के लिये योग्य माने गये हैं ।