योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 406
From जैनकोष
स्त्री-पर्याय में दिगंबरता का अभाव -
शशाङ्कामल-सम्यक्त्वा: समाचार-परायणा: ।
सचेलास्ता: स्थिता लिङ्गे तपस्यन्ति विशुद्धये ।।४०६।।
अन्वय :- शशाङ्कामल-सम्यक्त्वा: समाचार-परायणा: (च) ता: (स्त्रिय: अपि) लिङ्गे सचेला: स्थिता: विशुद्धये तपस्यन्ति ।
सरलार्थ :- जो स्त्रियाँ चंद्रमा के समान निर्मल सम्यक्त्व से सहित हैं और आगम-कथित समीचीन आचरण में प्रवीण हैं, वे स्त्रियाँ भी सवस्त्ररूप से स्थित हुई आत्मशुद्धि के लिये तपश्चरण करती हैं । (दिगम्बरता का स्वीकार नहीं कर पाती) ।