योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 255
From जैनकोष
अपाकजा निर्जरा का उदाहरण -
शुष्काशुष्का यथा वृक्षा दह्यन्ते दव-वहि्नना ।
पक्वापक्वास्तथा ध्यान-प्रक्रमेणाघसंचया: ।।२५५।।
अन्वय :- यथा दव-वहि्नना शुष्क-अशुष्का: वृक्षा: दह्यन्ते; तथा ध्यानप्रक्रमेण पप्- अपप: अघसंचया: (दह्यन्ते) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार दावानलरूपी अग्नि से सूखे वृक्षों की तरह गीले वृक्ष भी जलकर नष्ट होते हुए राख बन जाते हैं; उसीप्रकार अत्यन्त निर्मल ध्यानरूपी अग्नि से कालप्राप्त तथा अकालप्राप्त कर्मसमूह भस्म हो जाते हैं ।