योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 254
From जैनकोष
दोनों निर्जरा का स्वरूप -
प्रक्षय: पाकजातायां पक्वस्यैव प्रजायते ।
निर्जरायामपक्वायां पक्वापक्वस्य कर्मण: ।।२५४।।
अन्वय :- पाकजातायां पप्स्य एव (कर्मण:) प्रक्षय: प्रजायते । अपपयां निर्जरायां पप्-अपप्स्य कर्मण: (प्रक्षय: प्रजायते) ।
सरलार्थ :- पाकजा निर्जरा में पके हुए अर्थात् उदय काल को प्राप्त ज्ञानावरणादि आठों कर्मो का विनाश होता है । अपाकजा निर्जरा में पके-अपके अर्थात् काल प्राप्त-अकालप्राप्त दोनों प्रकार के ज्ञानावरणादि आठों कर्मो का विनाश होता है ।