दुरगति गमन निवारिये, घर आव सयाने नाह हो
From जैनकोष
दुरगति गमन निवारिये, घर आव सयाने नाह हो
पर घर फिरत बहुत दिन बीते, सहित विविध दुखदाह हो।।१ ।।
निकसि निगोद पहुँचवो शिवपुर, बीच बसैं क्या लाह हो।।२ ।।
`द्यानत' रतनत्रय मारग चल, जिहिं मग चलत हैं साह हो।।३ ।।