करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की
From जैनकोष
करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की
राग-बिना सब जग जन तारे । द्वेष बिना सब करम विदारे।।१ ।।
शील-धुरंधर शिव-तियभोगी । मनवचकायन कहिये योगी ।।२ ।।
रतनत्रय निधि परिग्रह-हारी । ज्ञानसुधाभोजनव्रतधारी ।।३ ।।
लोक-अलोक व्याप निजमाही । सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं ।।४ ।।
पंचकल्याणकपूज्य विरागी । विमलदिगंबर अंबर-त्यागी ।।५ ।।
गुनमनि-भूषन भूषित स्वामी । जगतउदास जगंतरस्वामी ।।६ ।।
कहै कहां लौं तुम सब जानौ । `द्यानत' की अभिलाष प्रमानौं ।।७ ।।