रे भाई! मोह महा दुखदाता
From जैनकोष
रे भाई! मोह महा दुखदाता
वस्तु विरानी अपनी मानैं, विनसत होत असाता।।रे भाई. ।।
जास मास जिस दिन छिन विरियाँ, जाको होसी घाता ।
ताको राख सकै न कोई, सुर नर नाग विख्याता ।।रे भाई. ।।१ ।।
सब जग मरत जात नित प्रति नहिं, राग बिना बिललाता ।
बालक मरैं करै दुख धाय न, रुदन करै बहु माता ।।रे भाई. ।।२ ।।
मूसे हनैं बिलाव दुखी नहिं, मुरग हनैं रिस खाता ।
`द्यानत' मोह-मूल ममताको, नाश करै सो ज्ञाता ।।रे भाई. ।।३ ।।