ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
From जैनकोष
ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
राज सम्पदा भोग भोगवै, बंदीखाना धारै।।ज्ञानी. ।।
धन जोवन परिवार आपतैं, ओछी ओर निहारै ।
दान शील तप भाव आपतैं, ऊंचेमाहिं चितारै ।।ज्ञानी. ।।१ ।।
दुख आये धीरज धर मनमें, सुख वैराग सँभारै ।
आतम दोष देखि नित झूरै, गुन लखि गरब बिडारै ।।ज्ञानी. ।।२ ।।
आप बड़ाई परकी निन्दा, मुखतैं नाहिं उचारै ।
आप दोष परगुन मुख भाषै, मनतैं शल्य निवारै ।।ज्ञानी. ।।३ ।।
परमारथ विधि तीन जोगसौं, हिरदै हरष विथारै ।
और काम न करै जु करै तो, जोग एक दो हारै ।।ज्ञानी. ।।४ ।।
गई वस्तुको सोचै नाहीं, आगमचिन्ता जारै ।
वर्तमान वर्तै विवेकसौं, ममता बुद्धि विसारै ।।ज्ञानी. ।।५ ।।
बालपने विद्या अभ्यासै, जोवन तप विस्तारै ।
वृद्धपने सन्यास लेयकै, आतम काज सँभारै ।।ज्ञानी. ।।६ ।।
छहों दरब नव तत्त्वमाहिंतैं, चेतन सार निकारै ।
`द्यानत' मगन सदा तिसमाहीं, आप तरै पर तारै ।।ज्ञानी. ।।७ ।।