हम तो कबहूँ न हित उपजाये
From जैनकोष
हम तो कबहूँ न हित उपजाये
सुकुल-सुदेव-सुगुरु सुसंग हित, कारन पाय गमाये! ।।हम तो. ।।
ज्यों शिशु नाचत, आप न माचत, लखनहारा बौराये ।
त्यों श्रुत वांचत आप न राचत, औरनको समुझाये।।१ ।।हम तो. ।।
सुजस-लाहकी चाह न तज निज, प्रभुता लखि हरखाये ।
विषय तजे न रजे निज पदमें, परपद अपद लुभाये।।२ ।।हम तो. ।।
पापत्याग जिन-जाप न कीन्हौं, सुमनचाप-तप ताये ।
चेतन तनको कहत भिन्न पर, देह सनेही थाये।।३ ।।हम तो. ।।
यह चिर भूल भई हमरी अब कहा होत पछताये ।
`दौल' अजौं भवभोग रचौ मत, यौं गुरु वचन सुनाये।।४ ।।हम तो. ।।