वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 156
From जैनकोष
उक्तेन ततो विधिना नौत्वा दिवसं द्वितीयारात्रि च ।
अतिवाहयेत्प्रयत्नादर्द्ध च तृतीयदिवसस्य ꠰꠰156꠰꠰
इसी विधि से जैसे कि सप्तमी के दिन किया, दूसरे दिन और दूसरी रात्रि भी धर्मध्यान में व्यतीत करे, सामायिक के अतिरिक्त शेष समय में स्वाध्याय करना चाहिये, कुछ श्रम को दूर करने के लिये अल्प निद्रा ऐसी चर्या से दूसरा दिन व्यतीत करे और रात्रि भी ऐसे धर्मध्यान में व्यतीत करे और तीसरे दिन का आधा समय समझ लीजिये एक प्रहर, वह बड़े प्रयत्न से यत्नाचारपूर्वक व्यतीत करे । उपवास के पहिले दिन का जो आधा समय था अर्थात् उपवास की प्रतिज्ञा ली सप्तमी को उस दोपहर के बाद का जो आधा दिन है जैसे कि दिन धर्म ध्यान में व्यतीत करे ऐसे ही उपवास के दिन याने अष्टमी का भी पूरा दिन धर्मध्यान में व्यतीत करे और उपवास की रात्रि में भी धर्मध्यान अपना बनाये रहे, फिर उपवास के दूसरे दिन दोपहर पर्यंत समय को धर्मध्यान में व्यतीत करे, इसके बाद फिर भोजन सामग्री जुटावें व भोजन करे । उसके पश्चात् गृह संबंधी कुछ अल्प आरंभ आदिक तो कर सकता है पर चूंकि यह प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत है, इससे मुनिव्रत की शिक्षा मिलती है, सो नवमी के दिन भी शाम को भोजन ग्रहण न करे तो मुनिव्रत की शिक्षा मिल गई । उपवास के बाद भोजन करने पर क्या परिस्थितियां होती हैं? मुनिजनों का उनका अनुभव और उन परिस्थितियों को सहने की समता यह शिक्षा मिलती है इसलिये श्रावक के प्रोषधोपवास में 3 दिन शाम को आहार जल का निषेध है ।