वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 51
From जैनकोष
भावसमणो य धीरो जुवईजणवेढि᳭ढओ विसुद्धमई ।
णामेण सिवकुमारो परीतसंसारिओ जादो ।।51।।
(91) भावश्रमणता में शिवकुमार की प्रगति का आरंभ―इस गाथा में यह बतला रहे कि अनेक निर्ग्रंथ द्रव्यलिंगी मुनियों ने भावलिंग पाये बिना, बहुत अध्ययन करके भी बहुत अधिक तपश्चरण करके भी मोक्षमार्ग नहीं पाया । अब इस गाथा में यह बतला रहे हैं कि बहुत अधिक न जानकर भी अविकार ज्ञानस्वभाव की पहिचान पा लेने से शिवकुमार नामक मुनि ने अपना कल्याण किया । शिवकुमार की कहानी इस प्रकार है कि इस जंबूद्वीप के पूर्व विदेह में कलावती देश है जहाँ बीतशोकपुर नामक नगर है, वहाँ महापद्य नाम का राजा था, जिसके वनमाला नाम की रानी थी । उसके शिवकुमार नाम का पुत्र हुआ । वह शिवकुमार एक दिन मंत्रीसहित वनक्रीड़ा करके नगर में आ रहा था, सो रास्ते में लोगों को देखा कि वे पूजा की सामग्री लिए हुए जा रहे थे । तो उसने अपने मित्रों से पूछा कि मित्रों, ये लोग कहां जा रहे हैं ? तो मित्रों ने बताया कि सागरदत्त नाम के मुनि ऋद्धिधारी इस वन में विराजे हैं, उनकी पूजा करने के लिए । ये सब लोग जा रहे हैं । तो वह शिवकुमार भी मुनि के पास गया और वहाँं अपने पूर्वभव सुना । पूर्वभव सुनकर उसको वैराग्य जगा और जैनेंद्री दीक्षा ली और दृढ़धर नाम के श्रावक के घर इसने प्रासुक आहार लिया । तत्पश्चात् स्त्रियों के निकट रहकर भी परम ब्रह्मचर्य पालते हुए असिधाराव्रत पालते हुए उसने 12 वर्ष तक तप किया और अंत में सन्यास मरण किया व्रत एवं समाधिमरण के प्रताप से वह ब्रह्मकल्प में विद्युन्माली देव हुआ । यही विद्युन्माली देव स्वर्ग से चयकर जंबूस्वामी केवली हुए । जंबूस्वामी की कथा में बताया है कि उनके माता पिता ने अत्यंत आग्रह करके इनका विवाह किया । 8 रानियां थीं, लेकिन ये रानियों के बीच रहकर भी विरक्त रहे और दो एक दिन में ही जंबूस्वामी ने वैराग्य ले लिया । ये सब पूर्वभव की विशुद्धियों को बताने वाले संकेत हैं, तो यहाँ यह बतलाया जा रहा है कि भावशुद्धि होने से शिवकुमार ने स्त्रीजनों के बीच रहकर भी असिधारा व्रत, परम ब्रह्मचर्य व्रत निभाकर संसार से पार पा लिया ।