वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 90
From जैनकोष
तित्थयरभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं ।
भावहि अणुदिणु अतुलं विसुद्धभावेण सुयणाणं ।।90।।
(276) सम्यक् श्रुताभ्यास का अनुरोध―भगवान ने जो पदार्थों का निरूपण किया है और भगवान की वाणी झेलने वाले गणेशों ने जिसको भली-भांति बताया है उसे आगमन का रूप दिया है, ऐसे अनुपम श्रुतज्ञान का हे कल्याणार्थीजनो विशुद्ध भावों से चिंतन करो अर्थात् भगवान ने जो हित के लिए उपदेश किया है उस उपदेश को बड़ी भक्तिपूर्वक सुनो ꠰ भगवान का उपदेश क्या है कि पहले तो आत्मा का ज्ञान करो । समस्त पदार्थों का सही ज्ञान करो । इस ज्ञान के होने से मिथ्यात्व मोह दूर हो जायेगा और जब मोह दूर हुआ तब रागद्वेष को जीतने के लिए तपश्चरण में लगो । तपश्चरण क्या है? मुख्य तपश्चरण तो यह है कि अपने आत्मा का जो चैतन्यस्वरूप है उरस चैतन्यस्वरूप में मग्न होओ । फिर व्रत, तप, उपवास एकांत शय्यासन आदिक कार्यों को करो । उन धार्मिक क्रियावों से भावों में निर्मलता आती है । इंद्रियां जो उद्दंड होती हैं उनकी उद्दंडता खतम हो जाती है । सो प्रभु की वाणी में जो उपदेश किया गया है उस उपदेश को मन की दृढ़ता से ग्रहण करो ।
(277) मोक्षमार्ग के तीन पौरुष―भगवान का क्या उपदेश है―(1) आत्मज्ञान, (2) तपश्चरण, (3) आत्मसाधना । जब तक आत्मा आत्मा में मग्न न हो जाये तब तक संयम से अपना कार्य करना । किसी जीव की हिंसा न हो, रसोई बनाने में, आरंभ करने में, दुकान आदिक में ऐसी सावधानी बने कि हिंसा न हो । फिर प्रभुभक्ति, सामायिक, वाणी का श्रवण इन सभी धर्मों को करें । यह ही प्रभु की वाणी में बताया गया है । सो हे कल्याण चाहने वाले पुरुष? अपने जीवन में स्वाध्याय और सत्संग कभी मत छोड़ो । यदि स्वाध्याय और सत्संग छोड़ा तो भटक जाने पर कोई समझाने वाला भी नहीं मिल सकता । रात दिन के 24 घन्टे में वहाँ बहुत से काम करते हैं वहाँ एक आध घन्टे का समय इसके लिए भी रख लो । मान लो जब कोई काम नहीं है, खाली बैठे हैं तो इस समय धर्मध्यान में यदि अपना मन नहीं लगाते तो बताओ क्या हाल होगा? बुद्धि बिगड़ जायेगी । इससे खाली समय में धर्मध्यान में अपना मन लगाओ । यह धर्मध्यान ही इस जीवन में और आगे भी मदद कर देगा । तो जिसको ज्ञान नहीं है उसके लिए सब दिशायें सूनी हैं । धन कम होने से गरीब न माने, जिसका मन गरीब हुआ वह गरीब हो गया । इससे ऐसी सद्बुद्धि बनानी चाहिये कि यदि संकट आता है तो धर्मध्यान में अधिक लगो, ठाली मत बैठो । ठाली बैठने से कई प्रकार के चित्त में विकार भाव आते रहते हैं । इससे प्रभुवाणी का सहारा लें और जो उपदेश किया है उसके अनुसार चलें तो इस आत्मा का कभी निकट काल में उद्धार हो जायेगा ।