वर्णीजी-प्रवचन:शीलपाहुड - गाथा 26
From जैनकोष
पुरिसेण वि सहियाए कुसमयमूढेहि विसयलोलेहिं ।
संसारे भमिदव्वं अरयघरट्टं व भूदेहिं ।।26।।
(52) मूढ़ जीव पर कुमतव्यामोह व विषयव्यामोह की विपत्तियां―जो मनुष्य विषयों के तो लालची हैं और खोटे मद में मूढ़ हैं मोहित हैं वे पुरुष अरहट की घड़ी की भांति संसार के जन्म मरण करके घूमते रहते हैं । देखिये―ये दोनों बड़ी विपत्तियां हैं―(1) विषयों का लालच जगना और (2) कुमतों में मोह व प्रेम उमड़ना । विषयों की इच्छा न रहे तो यह जीव आनंद में बैठा रहेगा, समता का सुख पायेगा, ज्ञान का रस लूटेगा, पर जैसे ही विषयों में लालसा हुई कि इसमें क्षोभ मच गया, अब यह अनेक परिणाम विकल्प बनाने लगा और उन विकल्पों से ऐसी प्रवृत्ति करने लगा कि जिससे संसार का कष्ट ही कष्ट पाता है । तो विषयों की तृष्णा हो जाना बहुत बड़ी भारी विपत्ति है और साथ ही यदि खोटे मद में मोहित हो गया तो वह और भी बड़ी भारी विपत्ति है ।
(53) जैनशासन में निरापद होने की शिक्षा―जैनशासन तो विषयों से विरक्ति सिखाता है । इसके पर्व, क्षेत्र, पूजा विधि ये सब इस ढंग के हैं कि जिनसे शिक्षा यह ही मिलती कि विषयों से तो विरक्त हों और आत्मा के स्वरूप में लीन हों । संसार में बाहर कहीं भी सार नहीं है । जिस भगवान को हम पूजते हैं, जिसकी मूर्ति बनाकर उपासना करते हैं उसकी मुद्रा ही देखो लोगों को कैसा उपदेश दे रही है । भगवान की मूर्ति बोलती कुछ नहीं, मगर अपने आकार से यह शिक्षा दे रही है कि भाई ! जगत में कोई भी वस्तु देखने लायक नहीं है याने जिसका आश्रय करने से, देखने से कुछ आत्मा को शांति मिले, ऐसा कुछ भी नहीं है । इसलिए सबका देखना बंद करें और अपने आप में अपने को देखें । प्रभु की मूर्ति यह शिक्षा दे रही कि जगत में कोई भी क्षेत्र, कोई भी स्थान जाने लायक नहीं, इसलिए पैर में पैर फंसाकर पद्यासन से विराजमान होकर यह शिक्षा दे रहे कि कहाँ जाना है? आत्मा में आओ और आत्मा में रमो, यहाँ ही सब कुछ मिलेगा । हाथ पर हाथ रखे है, यह मुद्रा शिक्षा दे रही है कि दुनिया में कोई काम करने लायक नहीं, इसलिए किसको करने का प्रयत्न करना? हाथ पर हाथ रखकर, निष्क्रिय होकर अपने आपमें ज्ञान की ही क्रिया करते रहो । तो जैनशासन के क्षेत्र में, मुद्रा में, पर्व में, पूजाविधि में निरंतर विषयों से विरक्त होने और आत्मा में लगने की शिक्षा मिलती है ।
(54) कुमतव्यामुग्ध जीवों का संसारभ्रमण―जैनशासन से बाहर देखो तो भगवान की कथायें भी ऐसी मिलेंगी कि जिनमें प्रेम राग बसा है, भगवान के स्त्री भी बताते, लड़के भी बताते, उन्हें हथियार से सुसज्जित भी बताते । भला बताओ वहाँ विरक्त होने की शिक्षा कहाँ से मिलेगी? सो जो कुमत में मूढ़ हैं, विषयों के लोलुपी हैं, ऐसे पुरुष संसार में इस तरह घूमते हैं जैसे अरहट की घड़ियां घूमती हैं । शायद अरहट आप लोगों ने देखा भी होगा, कुवे में ऐसा गोल चलता रहता है जिस पर रस्सी में घड़े बंधे रहते हैं पानी भरकर ऊपर लाते और डालकर फिर नीचे जाकर पानी भरकर लाते, फिर ऊपर डालते, कहीं-कहीं टीन की भी घड़ियां (डिब्बे) होती हैं, तो जैसे वे गोल-गोल घूमती रहती हैं, ऐसे ही संसार में वे जीव घूमते रहते हैं जो विषयों के तो लालची हैं और खोटे मद में मुग्ध हैं । ऐसा जानकर हे विवेकी जनों ! इस बात की सावधानी रखो कि खोटे मद में मोहित मत होओ, सही-सही तत्त्व का स्वरूप समझो और इंद्रिय के विषयों के लालची मत बनो । इन दो आपत्तियों से हटे रहोगे तो सन्मार्ग मिलेगा और कल्याण होगा ।