वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1394
From जैनकोष
सस्यानां निष्पत्ति: स्याद्वरुणे पार्थिवे च सुश्लाध्या।
स्वल्पापि न चाग्नेये वाय्वाकाशे तु मध्यस्था।।1394।।
कोई मनुष्य धान्य की उत्पत्ति का प्रश्न करे कैसा अनाज पैदा होगा तो उसका भी उत्तर भिन्न-भिन्न स्वरों में भिन्न प्रकार होगा। कोई वरुणतत्त्व में प्रश्न करे अथवा पृथ्वीमंडल में प्रश्न करे तो धान्य की उत्पत्ति ठीक होगी, यह उत्तर आयगा। और अग्नि तथा वायु तत्त्व में कोई प्रश्न करे तो अग्निमंडल में तो यह कहे कि स्वल्प भी न होगा, वायुतत्त्व में प्रश्न हो तो उत्तर होगा कि मध्यस्थ होगा। न बिल्कुल नष्ट होगा और न बहुत होगा, इस प्रकार बताया जा सकता है।