वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1709
From जैनकोष
ये तदा शशकप्राया मया बलवता हता:।
तेऽद्य जाता मृगेंद्राभा मां हंतुं विविधैर्बधै:।।1709।।
शिकार करने, जीवघात करने का नरक में संताप―नारकी जीव विचार कर रहा है कि जब मैं मनुष्यभव में था तो में बलवान था, मेरे आगे ये ही नारकी जो मेरे मारने को उद्यमी हो रहे थे वे मेरे समय में बेचारे दीन गरीब खरगोश की तरह थे, मैं बलवान था, मैंने इन्हें मारा, किंतु आज ये सिंह के समान हो रहे हैं और नाना प्रकार के घातों से मुझे मारने के लिए उद्यमी हो रहे हैं। परदृष्टि बहुत बड़ा पाप है, पर में राग अथवा द्वेष होने से अपने आपकी कुछ सुध नहीं रहती। यह महापाप है क्योंकि जीवों को शांति का पथ ही नहीं मिल सकता। बाह्यदृष्टि करना यह जीव का एक विरुद्ध काम है। सारी आकुलता परदृष्टि से उत्पन्न होती है, चित्त ठिकाने नहीं रहता, मन वश में नहीं रहता, यह सब परदृष्टि के कारण हुआ करता हे। कितना दु:ख भोगना पड़ता है? अभी-अभी कानपुर में एक धनिक के घर छापा मारकर सरकार ने उसका करीब 50 लाख का धन जब्त कर लिया। इस समय उसके परिवार के सभी लोग अपना दिल मसोसे बेचैन हालत में पड़े हुए हैं। तो करोड़ों रुपये की जायदाद छिपाकर रखा, उसका फल क्या हुआ सो देख लीजिए। कंजूस के पास धन कितना है यह तभी प्रकट हो पाता है जब उसकी चोरी, मारपीट, लुटाई हो। तो जिस परिग्रह के लिए लोग निरंतर व्याकुल रहा करते हैं वह परिग्रह जुड़ जाने पर व्याकुलता मिट जायगी क्या? सब जगह दृष्टि डालकर देखो, पर धनिक बनने की इच्छा सभी के लगी है। धनिक बनकर मिलता-जुलता कुछ नहीं बल्कि आकुलताएं बढ़ती हैं, कितने ही लोग तो कोई बड़ी हानि हो जाने पर हार्ट फेल होकर गुजरते हैं। तो जिन समागमों में लोग मौज मानते हैं वे समागम पर दृष्टि के दृढ़ करने में कारणभूत बन जाते हैं, अतएव उनके खोटे कर्मों का बंध होता है, दुर्गति में जन्म लेना पड़ता है। नारकी जीव चिंतन करता है―हाय ! मैं कैसा बलवान था, उनको अपने वश रखता था, ये बेचारे गरीब मेरे से भय करते थे, पर ये ही नारकी बनकर आज मेरा नाना तरह से घात कर रहे हैं। यह सब कर्मों की बरजोरी की बात है। जो मनुष्य खोटा परिणाम करता है प्राय: करके वह खाली नहीं जाता, उसका फल अवश्य भोगता है, और कुछ अनुभव से भी विचार लीजिए कि खोटा परिणाम यद्यपि तत्काल फल नहीं दिखाता, मगर कुछ समय बाद उसका फल इसी भव में दिख जाता है।